पुज्य जयतिलक जी मरासा ने फरमाया कि देशविरती धर्म के अंतर्गत नवां अणुव्रत का विवेचन चल रहा है! सामायिक परम आवश्यक साधन है जो चारो तीर्थ आराधना करते है! योग, कषाय इन्द्रियां वश में हो जाते है। संसार में रहते हुए भी पाप से निवृत्त करने को आंशिक साधना है! पाप दुगर्ति में ले जाता है उससे बचने सामायिक व्रत का निरुपण किया जिसे सुगमता से पालन कर सके। तीनो योगों का विश्वाम हो जाता है! सामायिक 18 पाप 25 कषाय 23 विषय 240 विकार का त्याग स्वतः ही हो जाता है! कर्म बंधन से बचने की चेष्टा है। उत्सकता जीव को सामायिक लेने को प्रेरित करती है। सर्वविरति सामायिक में खाना, पीना, परठना, सोना आदि का अवसर खुला है। किंतु देशविरति सामायिक में कुछ भी खुला नहीं क्योंकि वह अल्पकालीन है।
सर्वविरति सामायिक में शरीर को टिकाए रखने के लिए सारी शारीरिक क्रिया आवश्यक है! सूर्योदय से सुर्यास्त के बीच का समय आहार पानी के लिए खुला है। श्रावक श्राविका के लीये सामायिक में खाना, पीना, सोने का निषेध है एकान्त तीनों गुप्ति का पालन आवश्यक है। द्रव्य सामायिक के अभ्यास भाव सामायिक की आराधना भी करते रहना चाहिए 48 मिनट के लिए सावध प्रवृत्ति का तीनों योगो से त्याग आवश्यक है अन्यथा वह सामायिक के 32 दोषों से बच नहीं सकता!
शुभ योगों की प्रवृत्ति करना चाहिए! शुभ चिन्तन, निर्वाध वचन एवं काय से यतना रखना! इन सब बातो का पूर्ण ध्यान करते तो निर्वाध सामायिक होती है. जो कर्म निर्जरा में सहायक बनती है। सामायिक में सुई कुशाग्र मात्र भी यतना से ले यतना मे रखे। केवली भगवान के वचन है अत: पूर्ण साथ है।
सती सुभद्रा जिन्होंने मुनिराज के आँख से तुष निकाला। जिससे उन पर कलंक आया। इसलिए ही कहते है सावध प्रवृतिया त्याग करने वाले साधक को पूर्ण जागृत एवं यतना रखनी है। सामायिक में निद्रा आ जाय तो करने योग्य कार्य नहीं कर पाते प्रमाद में चले जाते है। सामायिक में पूर्ण जागृत रहने की आज्ञा है। रात्रि के दोष को संवर किया तो प्रतिक्रमण आवश्यक है। दिवस के दोषों का सांय प्रतिक्रमण करना अनिवार्य है। रात्री संवर किया तो सवेरे प्रतिक्रमण आवश्यक है सामायिक यतनापूर्वक पूर्ण जागृत रह कर करे इसके उपरांत भी दोष लग जाय तो आलोचना कर लो!
मन के असुभ व्यवहार से अशुभ कर्म एवं शुभ व्यवहार से शुभ कर्मों का बंंध होता है। एकांत आत्म चिंतन ही करना है! सामयिक में निंदा किसकी करना उसका विवेक चाहिए। स्वयं द्वारा ग्राहित दोषों को आलोचना करें। यदि दूसरे निंदा करे तो वह कलह का कारण बन जाता है पाप से धृणा करो, पापी से नहीं। क्योंकि पाप से घृणा करना भी आचरण में नहीं आता ! सामायिक अवगुण को दूर कर सदगुणो को भरने क साधन है!
अशोक खटोड़ ने प्रवचन पर आधारित पांच प्रश्न पुछे सही उत्तर देने वाले सभी को ईनाम दिया गया।