कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): बेंगलुरु के कुम्बलगोडु में स्थित आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र परिसर में चतुर्मासकाल व्यतित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में ज्ञान एक पवित्र चीज है।
ज्ञान किसी भी वस्तु, विषय या क्षेत्र का हो पवित्र होता है। आदमी के जीवन में ज्ञान का परम महत्त्व होता है। ज्ञान के बिना आदमी को अपने भले और बुरे की भी समझ नहीं हो पाती। इसलिए आदमी के पास अपना ज्ञान होना आवश्यक बताया गया है। सभी का ज्ञान समान भी नहीं हो सकता। सबका अपना-अपना ज्ञान होता है।
कोई किसी ज्ञान में निपुण हो सकता है तो कोई और अन्य ज्ञान में पारंगत हो सकता है। कोई हिन्दी का जानकार हो सकता है तो कोई संस्कृत तो कोई अंग्रेजी का ज्ञान रख सकता है।
ज्ञान सामान्य भी होता है और ज्ञान विशेष भी होता है। दोनों का अपना-अपना महत्त्व है। किसी विषय को गहराई तक जान लेना विशेष ज्ञान हो जाता है। सामान्य की बात करें तो एक दृष्टि से आचार्य, उपाध्याय, अर्हत और मुनि सभी साधु कहलाते हैं। कोई आचार्य है तो वह अपने आप में साधु ही है। आदमी को सामान्य और विशेष दोनों को जानने का प्रयास करना चाहिए।
साथ ही आदमी को इसके बीच के भेद को भी जानने का प्रयास करना चाहिए। भेद का ज्ञान होने से आदमी गहराई में भी जा सकता है। आदमी को भेद-अभेद और सामान्य और विशेष का ज्ञान करने का प्रयास करना चाहिए। जैसे श्रावक एक अभेद है, किन्तु यदि किसी एक श्रावक का नाम लेकर बुलाया जाए तो वह भेद की बात होती है।
भेद और अभेद की अपनी-अपनी उपयोगिता भी होती है। ‘सम्बोधि’ में नयवाद का विस्तृत सिद्धांत है। वह आदमी के विवेक पर निर्भर करता है कि आदमी कहां भेद-अभेद को महत्त्व देना है और कहां सामान्य और विशेष को महत्त्व देना है। आदमी को सामान्य और विशेष को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंचे श्री कल्याण संस्थान, कम्मरचेडु बल्लारी के मठाधिश्वर श्री कल्याण स्वामीजी ने अपना उद्बोधन देते हुए आचार्यश्री की अहिंसा यात्रा को साराहा। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक सम्मेलन/दीक्षांत समारोह का शुभारम्भ हुआ।
सम्मेलन में उपस्थित प्रशिक्षक व प्रशिक्षिकाओं को आचार्यश्री ने पावन आशीष प्रदान की। ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहनलाल चोपड़ा, बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, महासभा के उपाध्यक्ष श्री कन्हैयालाल गिड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
बेंगलुरु ज्ञानशाला प्रशिक्षकाओं द्वारा गीत का संगान किया गया। श्रीमती चंद्रा पोखरणा ने 27, श्रीमती अनिता पोरवाल ने 27 व श्रीमती मंजू बोहरा ने 30 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। मुनिश्री अनेकांतकुमारजी ने श्रद्धालुओं को तपस्या के सन्दर्भ में उत्प्रेरित किया।
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*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*