अक्कीपेट में दो महान संतो का समागम
बेंगलुरु। श्री वसुपूज्य जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ अक्कीपेट के तत्वावधान में रविवार का दिन अध्यात्मिक आराधना के क्षेत्र में अनुपम रहा, जब दो महान संतों का समागम हुआ ही, साथ ही मां सरस्वती की भव्य साधना भी हुई।
शरद पूर्णिमा के पावन दिवस पर विद्वान आचार्यश्री देवेंद्रसागरसुरीश्वरजी की पावन निश्रा में इस आराधना को अपनी साधना के संबल से पुष्ट करने के लिए जैन समाज के प्रखर प्रतिनिधि के रूप में विख्यात आचार्यश्री लोकेशमुनिजी ने बतौर अतिथि अपनी विशिष्ट एवं गरिमामय उपस्थिति दर्ज करा कर बड़ी संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं को लाभान्वित किया।
साधना की गंगा में अपनी प्यास बुझाने आए हुए साधकों से आचार्यश्री लोकेशमुनिजी ने कहा कि जब सब के विचार एक जैसे हो, मन एक समान हो तब मिलकर चलना व परस्पर मिलकर बात करना चाहिये।
निश्चित ही सभी का मन एक होकर परस्पर ज्ञान प्राप्त करेगा। परस्पर विरोधी दिशाओं में चलने पर समाज को ही हानि होगी। उन्होंने कहा कि जब हमारे संकल्प समान होंगे, हृदय परस्पर मिले हुए होंगे, हम सभी को मित्र की दृष्टि से देखेंगे तो समाज सुगठित रहेगा।
जब हम सबके विचार, समिति, मन और चित्त समान उद्देश्य वाले होंगे तो हम परस्पर मिलकर रह सकेंगे। जब हम कदम से कदम मिलाकर चलते हैं तो सफलता मिलती है। समाज में मनुष्य को एक दूसरे से प्रेमपूर्वक और शालीनता पूर्ण व्यवहार करने की प्रेरणा भी उन्होंने दी। अक्कीपेट जैन समाज के अध्यक्ष उत्तमकरण एवं पदाधिकारी कांतिलाल ने आचार्यश्री लोकेशमुनिजी का शॉल ओढ़ा कर बहुमान किया।
इस दौरान आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि नदियों का संगम तीर्थ बनाता है, संतों का संगम महातीर्थ बनाता है और आज दो धर्मगुरुओं के मिलन से अक्कीपेट में महातीर्थ का निर्माण हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि समाज में एकता की भावनाएं रखेंगे तभी हमारा समाज स्वस्थ और प्रगतिशील होगा।
धैर्य, आत्म, संयम, प्रेम, आनन्द, सन्तोष इन सब को प्रबंधित, संयमित करने की आवश्यकता है और ऐसा करना अकेले रहकर कतई संभव नहीं है अर्थात् समाज के दूसरे सदस्यों के सहयोग के बिना कुछ नहीं किया जा सकता है। देवेंद्रसागरजी बोले, कोई भी समाज समृद्ध नहीं हो सकता अगर इसके सदस्य स्वार्थी या ऐसे दोष वाले होंगे जो सहनशीलता की सीमा से बाहर हों, ऐसे समाज को केवल परिवर्तन की आंधी ही बदल सकती है।