जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक व दिवाली क़े शुभ प्रसंग पर वीरवाणी का विवेचन करते हुए इन्सान क़े जीवन में जब जब भी त्यौहर आते है उसका मन उत्साह से आशा से भर जाता है व निराशा कष्ट को भूलने का प्रयास करता है! नकारात्मक भावों का विसर्जन कर सकारात्मक भावों को जागृत करता है! प्रभु महावीर ने आम जनता को उपदेश देते हुए कहा, मानव जीवन का सार धर्म है, इस हेतु उसे सतत प्रयास करते रहने चाहिए, रोटी कपड़ा मकान पा लेना ही हमारे जीवन का एक मात्र लक्ष्य न होकर तप जप पुण्य परोपकार आदि आत्मीय गुणों को भी पाना आवश्यक है! इस हेतु हरिकेशी मुनि राज व अनाथी मुनि क़े उदारहण देते हुए कहा गया इस राजकीय वैभव वस्तुओं का परित्याग कर इन आत्माओं ने संयम ग्रहण कर उस अनन्त आधात्मिक वैभव को प्राप्त किया जिसका अंतिम परिणाम सर्व कर्म क्षय करके मोक्ष को पाना है!
मुनि मात्र वेश भेष से न होकर आंतरिक गुणों को अपनाने से सफल सार्थक बनता है! पांच महावरत जिसके अंतर्गत अहिंसा -सत्य -असतेय -ब्रह्मचर्य -अपरिग्रह को पूर्णतः मनसा वाचा कर्मना धारण करने वाला ही वास्तविक मुनि गुरु पद का धारक होता है!दुकानों में साईंन बोर्ड क़े अनुसार वस्तु पदार्थ रखने भी आवश्यक है! मात्र नामकरण से व्यापार व्यवसाय संभव नहीं है! साधक का जीवन भी साधना से परिपूर्ण सम्पन्न होना चाहिए! सभा में महामंत्री उमेश जैन प्रधान महेश जैन व राज कुमार गोठी परिवार द्वारा स्वागत सत्कार किया गया।