पांच दिवसीय होंगे आयोजन, 11 से 15 अगस्त तक सामयिक, सामूहिक जाप, वंदना, दान और तप दिवस मनेंगे
Sagevaani.com @शिवपुरी। प्रसिद्ध जैन संत और राष्ट्र संत की उपाधि से अलंकृत स्थानकवासी जैन समाज के द्वितीय आचार्य आनंद ऋषि जी म.सा. के 123वे अवतरण दिवस पर शिवपुरी में प्रसिद्ध साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के सानिध्य में अनेक धार्मिक आयोजन होंगे। 11 अगस्त से 15 अगस्त तक पांच दिवसीय धार्मिक कार्यक्रमों में सामयिक दिवस, सामूहिक जाप दिवस, वंदना दिवस, दान दिवस और तप दिवस मनाया जाएगा। आचार्य आनंद ऋषि जी म.सा. का जन्मदिवस मनाने के लिए जैन समाज में अपूर्व उत्साह देखने को मिल रहा है।
शिवपुरी में चातुर्मास कर रहीं गुरूणी मैया रमणीक कुंवर जी महाराज, ओजस्वी प्रवचन प्रभाविका नूतन प्रभाश्री जी, तपस्वी रत्ना पूनमश्री जी, मधुर गायिका साध्वी जयश्री जी और साध्वी वंदनाश्री जी ने बताया कि आचार्य आनंद ऋषि जी का जीवन हम सबके लिए एक मिसाल था। 13 वर्ष की उम्र में दीक्षित आचार्य आनंद ऋषि जी ने लगभग 80 वर्षों तक संयम जीवन का पालन किया और 28 मार्च 1992 को अहमदनगर महाराष्ट्र में उन्होंने संथारा कर (उपवास द्वारा) मृत्यु को वरण किया।
भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया था। उनके जन्मदिवस पर पोषद भवन शिवपुरी में 11 अगस्त को सामयिक दिवस मनाया जाएगा। इस दिन धर्मसभा में पधारने वाले सभी श्रावक और श्राविका 48 मिनट की सामयिक कर समता को धारण करेंगे। इसमें श्रावक कम से कम दो और श्राविका कम से कम तीन सामयिक करेंगी। 12 अगस्त को सामूहिक जाप दिवस मनाया जाएगा जिसमें जोड़े से श्रावक और श्राविका जाप कर आचार्य आनंद ऋषि जी को अपनी भावांजलि अर्पित करेंगे।
जाप का समय सुबह 9 बजे से प्रारंभ होगा। जोड़े से जाप करने वाले अपने नाम की पर्ची बनाकर साध्वी वंदनाश्री जी को देंगे। 13 अगस्त को वंदना दिवस मनाया जाएगा जिसमें कम से कम 27 वंदना की जाएंगी। 14 अगस्त को साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज की प्रेरणा से दान दिवस मनाया जाएगा जिसमें श्रावक और श्राविका उस दिन विभिन्न प्रकार के दान करेंगे जिनमें औषध दान, भोजन दान, जीवन दान, वस्त्र दान, पुस्तक दान, ज्ञान दान आदि दान शामिल हैं। 15 अगस्त को आचार्य आनंद ऋषि जी के जन्मदिवस पर सामूहिक आयंबिल तप होगा जिसमें जैन भाई बहन बिना घी, तेल, दूध, दही के 24 घंटे में एक बार रूखा-सूखा भोजन ग्रहण करेंगे। आयंबिल तप के लाभार्थी कमलचंद्र जी गूगलिया परिवार होंगे।
स्वाध्याय के श्रेष्ठ साधक हैं धर्मराज युधिष्ठिर : साध्वी नूतन प्रभाश्री
स्वाध्याय का सिर्फ इतना ही अर्थ नहीं है कि शास्त्रों का वाचन करो, बल्कि भले ही एक वाक्य पढ़ो, परंतु उसे अपने जीवन में भी उतारो। इस संबंध में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने एक कथा सुनाते हुए कहा कि आचार्य द्रोण के पास पढऩे के लिए कौरव और पाण्डव दोनों आते थे। आचार्य द्रोण ने एक दिन अपने विद्यार्थियों को याद कराया कि क्रोध नहीं करना। दूसरे दिन उन्होंने कौरवों और पाण्डवों दोनों से पूछा कि उन्हें अपना होमवर्क याद है या नहीं। इस पर धर्मराज को छोड़कर सभी ने कहा उन्हें याद है क्रोध नहीं करना।
तीसरे-चौथे दिन फिर द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने नकार में सिर हिलाया। इससे गुस्साए द्रोण ने धर्मराज के गाल पर एक चांटा मारा और कहा कि इतनी सी बात तुम्हें याद नहीं रहती। इस पर धर्मराज बोले- हां मुझे याद है गुस्सा नहीं करना है। आगे उन्होंने कहा कि शाब्दिक रूप से तो मैं उसी दिन जान गया था, लेकिन आज आपकी पिटाई से मुझे गुस्सा नहीं आया और मुझे समझ आ गया कि गुस्सा नहीं करना है। साध्वी जी ने कहा कि स्वाध्याय सिर्फ शब्दों को पढऩे का नाम नहीं, बल्कि जीवन को बदलने का विज्ञान है।