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साध्वी पूनम श्री के साथ 40 दिन की तपस्या करने वाले श्रावक श्राविकाओं का हुआ बहुमान

साध्वी पूनम श्री के साथ 40 दिन की तपस्या करने वाले श्रावक श्राविकाओं का हुआ बहुमान

साध्वी जी ने इसके पूर्व 45 दिन का सिद्धी तप भी किया था, जैन समाज ने तपस्या की अनुमोदना की

तपस्वी रत्ना की उपाधि से अलंकृत प्रसिद्ध जैन साध्वी पूनम श्री जी ने 40 दिन की तपस्या कर प्राचीन काल में परदेशी राजा द्वारा की गई तपस्या को दोहराया। उनकी तपस्या का अनुकरण कर युवा पीयूष कर्नावट ने भी 12-12 बेले (दो उपवास) की तपस्या की और अंतिम बार एक तेला कर तपस्या की पूर्णाहुति की। पीयूष कर्नावट के अलावा श्रावक अशोक गूगलिया और श्राविका बहिन श्रीमती पुष्पा गूगलिया, कु. मंजूलता गुगलिया, श्रीमती शशिकांता गूगलिया, श्रीमती सुधा कास्टया, श्रीमती रीता गुगलिया और श्रीमती वीणा दूधेरिया ने भी उपवास के स्थान पर 12-12 एकासनें और तीन लगातार एकासनें कर अपनी तपस्या पूर्ण की। तपस्या पूर्ण होने पर जैन श्वेताम्बर श्री संघ, चार्तुमास कमेटी, श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ और ब्राह्मी बहूमण्डल ने तपस्वी श्रावक और श्राविकाओं का सम्मान कर उनकी तपस्या की अनुमोदना की।

तपस्या करने वाले श्रावक और श्राविकाओं ने बताया कि उन्होंने यह कठिन तपस्या साध्वी पूनम श्री जी की प्रेरणा और उनके नेतृत्व में की है तथा हमारी तपस्या का पूरा श्रेय उन्हें है। इस अवसर पर गुरूणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी और ओजस्वी प्रवचन प्रभाविका साध्वी नूतन प्रभाश्री जी, मधुर गायिका साध्वी जयश्री जी और आशूकवि साध्वी वंदना श्री जी ने तपस्वी श्रावक श्राविकाओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि भविष्य में भी वह इसी तरह तपस्या कर अपने कर्मों की निर्जरा कर जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करें।

तपस्या अनुमोदना सभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उदबोधन में कहा कि शिवपुरी की पुण्य भूमि तपस्या की दृष्टि से साध्वी पूनम श्री जी के लिए बहुत उर्वरा साबित हुई। उनकी सुशिष्या साध्वी पूनम श्री जी ने पहले 45 दिन का सिद्धी तप किया। सिद्धी तप में उपवास से प्रारंभ कर दो तीन, चार, पांच, छह, सात और आठ उपवास किए जाते हैं।

उनकी तपस्या का अनुमोदन शिवपुरी समाज के श्रावक और श्राविकाओं ने तपस्या कर किया। सिद्धी तप की सफलता के बाद साध्वी पूनम श्री जी ने परदेशी राजा की तरह 12-12 बेले और तेरवा तेला की तपस्या कर अपना तप पूर्ण किया। यह खुशी की बात है कि शिवपुरी समाज के श्राविकाओं ने उनकी तपस्या की अनुमोदना खुद तपस्या कर की। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि तपस्या करने से कर्मो की निर्जरा होती है और तपस्वी को आत्मा की अनुभूति होती है। चार्तुमास कमेटी के संरक्षक और स्थानक वासी जैन समाज के अध्यक्ष राजेश कोचेटा ने अपने उदबोधन में बताया कि साध्वी पूनमश्री जी और श्रावक-श्राविकाओं की तपस्या से साध्वी रमणीक कुंवर जी का शिवपुरी चार्तुमास अविस्मणीय और ऐतिहासिक साबित हुआ है।

मूर्ति पूजक जैन समाज के अध्यक्ष और चार्तुमास कमेटी के संरक्षक तेजमल सांखला ने अपने उदबोधन में कहा कि जैन दर्शन में तपस्या को मोक्ष का द्वार बताया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों की सजा भुगतना पड़ती है, लेकिन तपस्या से उस सजा का प्रकोप काफी हद तक कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तपस्या आत्मा में रमण करने का नाम है। इस अवसर पर श्रावक अशोक कोचेटा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इसके पश्चात सबसे पहले तपस्वी पीयूष कर्णावत का श्वेताम्बर जैन श्री संघ ब्राह्मी बहू मंडल और मूर्ति पूजक जैन समाज ने सम्मान किया। इसके बाद अन्य तपस्वियों का बहूमान किया गया। कार्यक्रम का संचालन रीतेश गूगलिया ने किया।

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