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साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने मांगी भाई दौज की भेंट, कहा अपने घर के बातावरण में घोलो मिठास

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने मांगी भाई दौज की भेंट, कहा अपने घर के बातावरण में घोलो मिठास

जैन साध्वी जी ने धर्मसभा में बताया गौतम प्रतिपदा का महत्व 

Sagevaani.com /शिवपुरी। पांच दिवसीय प्रकाश पर्व के अंतिम दिन भाई दौज के त्यौहार पर मैं अपने धर्म भाईयों से भेंट मांगना चाहती हूं। क्या आप मुझे भाई दौज की भेंट देंगे। मैं इस अवसर पर आपसे भेंट मांगती हूं कि आप अपने घर के वातावरण में मिठास घोलें। परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति समर्पित हो जाऐं।

जब आप घर जायें तो वहां प्रेम के साथ जाऐं, स्वास्र्थ और व्यापार को दूर रखें। यदि आप तैयार हैं तो मैं भाई दौज का टीका आपको लगा देती हूं उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कमला भवन में भाई दौज के अवसर पर आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्म सभा में उन्होंने गौतम प्रतिपदा का महत्व बताते हुए कहा कि भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी जब प्रभू के प्रति अतिशय मोह की भावना से मुक्त हो गए तो उन्हें केबल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। धर्मसभा में गुरूणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी ने भक्तगणों को आशीर्वाद दिया वहीं साध्वी वंदना श्री जी और साध्वी जय श्री जी ने सुमधुर स्वर में भजनों का गायन किया।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने धर्म के भाईयों से कहा कि यदि आप मुझे भाई दौज की भेंट देने को तैयार है तो मैं आपके माथे पर श्रद्धा और ज्ञान का टीका चारित्रय का चावल और तप का श्रीफल भेंट करने को तैयार हूं। जिससे आपके जीवन में ज्ञान का प्रकाश और ईश्वर के प्रति श्रद्धा का सैलाव उमड़ेगा। जीवन चरित्र से परिपूर्ण और संयमित होगा। तप के श्रीफल से आपके कर्मों का क्षय होगा और आप जीवन के लक्ष्य की ओर अग्रसर होंगे। साध्वी जी ने भाई बहिन के पवित्र प्रेम की शास्त्रों में वर्णित कथा को भी सुनाया।

इस अवसर पर साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने गौतम प्रतिपदा की महिमा को बताते हुए कहा कि गुजरात राज्य में गौतम प्रतिपदा के दिन नए वर्ष का शुभारंभ होता है। उन्होंने कहा कि गौतम भगवान महावीर के सबसे बड़े शिष्य थे और वह विद्धवान तथा अनेक सिद्धियों के धारक थे। उनके बाद आए भगवान महावीर के कई शिष्यों को केवल्य ज्ञान हो गया। लेकिन गौतम को सिर्फ इसलिए केवल्य ज्ञान नहंी हुआ क्योंकि उनका भगवान के प्रति गहन प्रेम था। इसी कारण भगवान जब निर्वाण को प्राप्त हुए तो उन्होंने गौतम को अपने से अलग कर एक ब्राह्मण को प्रतिवोध देने के लिए भेज दिया था। जब गौतम वहां आए तो भगवान निर्वाण को प्राप्त हो चुके थे। तब गौतम विलाप करने लगे और इसके पश्चात वह भगवान के मोह से मुक्त हुए तथा उन्हें भी केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ।

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