बेंगलुरु। विल्सन गार्डन संघ में विराजित जैन सिद्धांताचार्य साध्वीश्री प्रतिभाश्रीजी म.सा. ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि यज्ञीय नामक 25 वें अध्ययन में उस युग के श्रमण ब्राह्मण परंपरा की मूलभूत सिद्धांतों की चर्चा है।
यज्ञ मंडप में जयघोष मुनि का याज्ञिक विद्वानों के साथ संवाद होता है, जिसमें सच्चे ब्राह्मण का स्वरूप, सच्चे श्रमण की परिभाषा, वास्तविक यज्ञ धर्मयज्ञ का विवेचन करते हुए धर्म में जातिवाद के महत्व का निरसन किया गया है और तप एवं आचार प्रधान धर्म की महिमा बताई गई है।
उन्होंने कहा कि समाचारी नामक 26 वे अध्ययन में श्रमण की, दिन एवं रात्रि के आठ प्रहर की सम्यक चर्चा का वर्णन है। समाचारी साधु जीवन में छोटे बड़े नवदीक्षित, स्थवीर, गुरु शिष्य आदि के पारस्परिक व्यवहारों और कर्तव्यों की आचार संहिता है।
साथ ही साधु वर्ग को प्राप्त शरीर, मन, वाणी और इंद्रियां आदि साधनों को बाह्य लक्ष्मी न बनाकर अंतरंग लक्ष्मी आत्म लक्ष्मी बनाने हेतु भी यह समाचारी है। साध्वीश्रीजी ने कहा कि संसार सागर को पार करने के लिए पंचाचारमयी तरणी है।
मोक्ष-मार्ग-गति नामक 28 वें अध्ययन में निग्रंथ साधु वर्ग का अंतिम साध्य मोक्ष है, मार्ग है उसे पाने का साधन और उसमें गति प्रगति करना साधक का सम्यक पराक्रम है। साघ्य को पाने के लिए साधनों का आलंबन लेना अनिवार्य है। साधनों को जान लेने अथवा मान लेने मात्र से ही साध्य प्राप्ति तक पहुंचना कठिन है।
इसी उद्देश्य से इस मोक्ष-मार्ग-गति नामक 28 वें अध्ययन का निरूपण किया गया है। प्रकाश चंद बम्ब ने सभी का स्वागत किया, उन्होंने बताया कि सभा का संचालन संघ के अध्यक्ष मीठालालजी मकाना ने किया।