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साधु का आहार जितना शुद्ध होगा, उनका संयम उतना ही उत्कृष्ट होगा – युवाचार्य महेंद्र ऋषि

साधु का आहार जितना शुद्ध होगा, उनका संयम उतना ही उत्कृष्ट होगा – युवाचार्य महेंद्र ऋषि

डीजी वैष्णव काॅलेज में धर्मसभा का आयोजन

श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी महाराज का पदार्पण मध्यवर्ती अरंबाक्कम स्थानकवासी जैन संघ में रविवार प्रातः हुआ। वे एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर से विहार कर अरंबाक्कम स्थित डीजी वैष्णव काॅलेज के प्रांगण में पहुंचे। वहां धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने साधु के आहार- विहार चर्या के रहस्यों पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा हमारे आगमों में आता है जब हमारे परमात्मा के गणधर या आचार्य साधुचर्या करके आगे बढ़े। साधु-चर्या के दो मूलभूत आधार है आहार और विहार। ये साधुचर्या के अभिन्न अंग है। साधु समाचारी के अनुसार इन चर्या का निर्वहन महत्वपूर्ण है। हम जब आहार ग्रहण करने के लिए आते हैं, वह आपके लिए सुपात्रदान होता है। यह आहारचर्या उदर पूर्ति के लिए नहीं है बल्कि श्रद्धा को बढ़ाने, आशीर्वाद मिलने का माध्यम है। यदि साधु को आहार नहीं मिलता तो वे आटे में पानी मिलाकर भी पी लेते हैं। यह परंपरा द्वारा दिया गया सिस्टम है।

उन्होंने कहा साधु को सूझता आहार ही वहोराना चाहिए, कभी असूझता नहीं वहोराना। कोई भी साधु- संत आए और योग नहीं बने तो भावना जरुर भानी चाहिए। आहारचर्या के कारण साधु की संयम यात्रा सुखद व साता में रहती है। हमारे यहां आहार का परठना नहीं कर सकते। आप इसे झूठा छोड़ना कहते हैं। साधु का आहार जितना शुद्ध होगा, उनका संयम उतना ही उत्कृष्ट होगा। आप यह ध्यान रखना कि साधु- संतों का विहार होता है, विदाई नहीं। यह विहार- चर्या हमें आपसे मिलाती है। इससे धर्म से जुड़ने का आलंबन मिलता है। इस विहार में आपकी कसौटी लगती है।

उन्होंने कहा आहार-चर्या भिक्षुचर्या तप है। विहार-चर्या कायक्लेश तप है। सहज में तप वही है, जो प्रसन्नता पूर्वक किया जाता है। विहार-चर्या तप तभी सही है। साधु विहार- चर्या के मोह में कभी नहीं फंसते हैं। यदि जीवन में आगे बढ़ना है तो जैसे विहार होता है, वैसे ही करते जाना। उन्होंने कहा चलते समय दाएं- बाएं नहीं देखा जाता है, सिर्फ आगे- पीछे चला जाता है। दाएं-बायें में उलझ जाओगे तो चल ही नहीं पाओगे, जीवन में आगे बढ़ ही नहीं पाओगे। अगर आगे बढ़ना है तो दोनों कदमों पर भरोसा रखना पड़ेगा।

उन्होंने कहा विहार-चर्या आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यह मोह को कम करने वाली है। अगर हम इसमें उलझ गए तो हमारी साधना कमजोर पड़ सकती है। साधना के प्रति ममत्व कम हो जाएगा। विहार-चर्या यह संदेश देती है कि मेरा-तेरा मत करो। पंछी जिस तरह आकाश में मुक्त रहता है, वैसे ही साधु विहार-चर्या में ही मुक्त रह सकते हैं। आपकी मंगल कामना का पाथेय साथ में रखो। गुरुदेव का आशीर्वाद, आपकी मंगल कामना हमारा आलंबन बनेगी। संतों की विहार-चर्या सबके लिए आनंददायी रहती है। हमारी भी आपके लिए खूब- खूब मंगल कामना। आप सभी धर्म ध्यान में आगे बढ़ें। उन्होंने कहा हम अरंबाक्कम संघ का नजारा देखकर अभिभूत हैं।

उन्होंने बताया कि फरवरी 2025 में अध्ययनरत मुमुक्षु शिवम बाफना की दीक्षा वडगांव मावल में निश्चित हुई है। उन्होंने अहमदनगर प्रवास में भी उपस्थित होने की प्रेरणा दी। सोमवार प्रातः पोरुर स्थानकवासी जैन संघ में युवाचार्यश्री के प्रवचन होंगे। इस दौरान महासंघ के मंत्री धर्मीचंद सिंघवी, राजेश चौरड़िया, सम्राट मेहता ने अपने विचार रखे। इस मौके पर महासंघ के पदाधिकारी और अरंबाक्कम स्थानकवासी जैन संघ के अध्यक्ष किरणकुमार रांका, मंत्री विनोदकुमार चंडालिया, कोषाध्यक्ष दीपक पगारिया सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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