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साधु अपनी साधना शांति पाने के लिये करता है:दर्शन मुनि जी मा. सा.

साधु अपनी साधना शांति पाने के लिये करता है:दर्शन मुनि जी मा. सा.

सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद

*पुज्य की दर्शन मुनि जी मा. सा.* जीव को 9 प्रकार से नीद नहीं आती। योगी, भोगी, रोगी 1-योगी अपनी साधना आराधना कुछ पाने के लिये करता है, साधु अपनी साधना शांति पाने के लिये करता है, आत्मा के लक्ष्यको लेकर साधना करते हे। आत्मा सदगति की ओर जाये ।योगी को नींद नहीं आती है। जो इंद्रियों के वशीभूत होकर 1 जीव कर्म बांधता है वह *भोगी* हे उसको नीद नहीं आती हे, *रोगी* होता है, शरीर से पीड़ित को नींद नहीं आती है,।

*पूज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी मासा*→ परमपिता ने निःस्वार्थ उपदेश दिया, परमात्मा को कोई स्वार्थ नहीं। कोई मोह नहीं ।

में वह बात कह रहा हूँ यह बात पहले तीर्थंकर कह चुके है, *बहुरत्ना वसुन्धरा* – रत्नों की कमी नहीं, काल का हिस्सा है, पूज्य गुरुदेव कहते थे कि *कभी दुनिया की चिंता करना मत* तु हे तो भी संसार चलेगा, नही तो भी संसार चलेगा। न किसी से अति राग हे न अति द्वेष है। गुरुदेव ने कर्म बंध से बचाया, बंधन से छुडाने वाला सदगुरु पुण्य से मिलते है।

*संतिम* – उपदेशक शांति का उपदेश करे। दीमाग में शांति हो तो कार्य कर सकते हे, असावधानी अशांति से, शांत चित्त से गया कार्य पूरा होता है, चंचल मन को स्थिर बनाये । *छंदो वणीया*- स्वच्छन्दता से जीव कर्म बांधता है, मेरी ऐच्छा से जो करुंगा तो कर्म बेोगे। स्वच्छन्दता- जहाँ अपनी वाली चलाते है ,वहाँ कर्म बांधते है। *कल्याण अपनी करनी से होता है।*

धर्म जीना है करना नहीं है। साधु को किसी दूसरे साधु को देखकर खुशी व आत्मीयता नहीं आये तो साधु किस काम का। कोई अपना अहं छोड़ने को तैयार नहीं। मनभेद को खत्म करना है मनभेद से कर्म बंधता है, अभिमान आता है अभिमान की रक्षा के लिये क्रोध करता है ।

*राग द्वेष* की सेना बड़ी है। जीव कर्म बांधता है। आचारांग सुत्र बहुत गहरा है, *स्वच्छन्दता* के मन में शांति नहीं रहती है। ? हमारा चित्त अलझा हुआ हे.. इसमें धर्म कहाँ होगा! *ईच्छाये* बढ़ती जायगी तो दुःख बढ़ता जायगा। ईच्छा बड़ी झंझट बढ़ी, संसर की अशांति बढ़ी । *ईच्छाओं का अंत नहीं*। आज नोट करो कि कितनी ईच्छा जगी ! जिसका मन शांत रहता है वह सुखी रहता है।

ईच्छाये बढ़ती गई, पुरी करने के लिये अशांति बढ़ती गई। दीमाग में शांति हे तो सब जगह शांति हे। ( *छन्दोवणीया-* *स्वच्छन्दता*)
गुरुदेव कहते थे कि …समय सबसे बड़ी दवा हे यह सब ठीक कर देगा। सारी समस्या का समाधान एक के पास है वो है *समय*। जो होगा अच्छा होगा, जो हुआ अच्छा हुआ *सोच सीधी रखो* |

9 बाते कभी अपने मुख से नहीं करना।
*आयुर्वित्त गृहश्छिद्र, मंत्र -मैथुन-औषधं।*
*नव गोप्यामि कारयेत् – दान- मान-अपमान ।*
आयुष्य,,ग्रह की बात नही बताना,धन नही बताना…….

स्वच्छन्दता से सम्मान ‘खत्म होता चला गया। जीवन मिला है जीवन सुधारने के लिये, बिगाड़ने के लिये नहीं। *स्वच्छन्दता* से जीव कर्म बांधता है और इज्जत भी कम होती है।

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