यहां शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा कि साधुओं की न कोई आशा है न निराशा है। कभी जिंदगी में भी चुभता वचन नही बोलते हैं। जीवन में तन का ढ़ंग, जन का ढ़ंग एवं इंसान का क्या ढ़ंग है ये भगवान व गुरु बताते हैं।
जिसके जीवन में कषाय शांत है वो ही साधु। कषाय का मतलब लोभ, क्रोध,मोह, माया का नियंत्रण करना। जिसके रोम रोम में दया व करुणा भरी होती है। जो लेते एक है लेकिन देते दो हैं वो साधु है।
साधु के एक शब्द में अर्थ छिपा हुआ है। भगवान का एक वचन भी जीवन में बहुत बड़ी बात है। मानव शुभ कार्य करने में कभी देरी न करें क्योंकि सांय तक कब क्या होगा वो कोई नहीं जानता है।