जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 23 जुलाई रविवार, परम पूज्य सुधाकवर जी मसा के मुखारविंद से:-उत्तराध्ययन सूत्र के 29वें अध्ययन में साधर्मिक भक्ति का विश्लेषण! सा धार्मिक भक्ति करने से उनकी स्तुति गुणगान करने से आत्मा दुर्गति में नहीं जाता है सागर में हमारे आंगन में आया हुआ कल्पवृक्ष है साधर्मिक की यथा शक्ति सेवा भक्ति करनी चाहिए! साधर्मिक अर्थात जिसका समान धर्म हो समान आचार विचार हो!
साधर्मिक की आर्थिक स्थिति सही नहीं हो तो उसका पूर्ण सहयोग करना जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में उसकी सहायता करना। यदि उसका मन अशांत हो तो प्रीति जनक मधुर वचन बोलकर उसे सांत्वना प्रदान करना। साधर्मिक भक्ति करने से दर्शन की विशुद्धि होती है, आंतरिक भावों में निर्मलता आती है, अंतः करण की वृत्तियां सुकोमल बनती है।
प.पू.सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:-मनुष्य की भावनाएं विषाक्त हो चुकी हैं क्योंकि हमारे बुद्धि के तो सारे दरवाजे खुल गए परंतु हृदय के दरवाजे बंद हो गए। हमारे भीतर में कितना जहर भरा हुआ है ईर्ष्या का जहर, द्वेष का जहर, क्रोध का जहर इत्यादि। हमारे भीतर कोमलता का अभाव है क्योंकि तनाव के कारण हम भीतर से बहुत कठोर हो चुके हैं। परमात्मा ने कहा है कि हमें अपने सहयोगियों के प्रति कृतज्ञ भाव रखने चाहिए। आज हम सहयोग तो ले लेते हैं पर उनके प्रति कृतज्ञ नहीं रहते। हम आज जो कुछ भी है वह इसीलिए है क्योंकि हमारे आस पास वाले लोग हमें निरंतर सहयोग कर रहे हैं। एक श्रावक का धर्म है कि वह अपने उपकारी के उपकार को कभी ना भूले। इसी के साथ अपने भीतर में सौम्यता धारण करें और अपने आप को कलह वृत्ति से दूर रखें और यह सब संभव है जब हम अपने दिमाग में ज्यादा बातें ना रखें।
धर्म सभा में लोगस्स के पाठ का जाप कराया गया एवं प्रवचन के पश्चात धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 21 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 13 उपवास, एवं श्रीमती प्रकाश बाई लालवानी ने 12 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।