कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): शनिवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘सम्बोधि’ प्रवचनमाला के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पदार्थ उसी आदमी के मन में राग-द्वेष पैदा करने में योगभूत बनता है जो आदमी अवीतरागी होता है।
एक से छठे गुणस्थान में जीने वाला व्यक्ति में राग-द्वेष पैदा करने के लिए पदार्थ ही योगभूत बनता है। ‘सम्बोधि’ में वीतराग व्यक्ति में विषय और पदार्थ प्रियता अथवा अप्रियता के भाव पैदा नहीं कर सकते। जो आदमी संकल्प-विकल्प में रहता है, वह व्यक्ति पदार्थों के प्रति आसक्ति की भावना से ग्रसित हो सकता है।
आसक्ति का नाश करने के लिए आदमी को संकल्प-विकल्प से बचने का प्रयास करना चाहिए। प्रथम चार घाति कर्मों का नाश कर आदमी केवलज्ञानी बन सकता है। उसके उपरान्त शेष चार कर्मों का क्षय कर वह केवलज्ञानी व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है जो शाश्वत है।
मोह के वशीभूत आदमी झूठ, छल-कपट, माया, हिंसा, हत्या आदि में संलिप्त होकर दुःख, अशांति आदि की गर्त की ओर अपने कदम बढ़ा लेता है। मोहनीय कर्म ही आदमी को पाप कर्मों में प्रवृत्त करने वाले होते हैं।
प्रत्येक पाप कर्मों के मूल में मोहनीय कर्म होता है। मोहनीय कर्म का क्षय करने के लिए तपस्या, अनुप्रेक्षा, ध्यान, साधना करने का प्रयास करना चाहिए और मोहनीय कर्म को क्षय कर अपनी आत्मा को कल्याण की दिशा में ले जाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को कमजोर करने के लिए धर्म और साधना की जाती है। साधना संघर्ष है। साधक का मोह के साथ ही संघर्ष चलता रहता है। मोह से मुक्त व्यक्ति ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
आचार्यश्री ने स्वरचित ग्रन्थ ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के माध्यम से लोगों को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा एक गीत की प्रतियोगिता में भाग लेने और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त करने तथा आचार्यश्री कालूगणी द्वारा कल्याणक के रूप में पुरस्कार प्राप्त करने के घटना प्रसंग का वर्णन किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में नित्य की भांति तपस्याओं के प्रत्याख्यान के क्रम में श्री जितेन्द्र सालेचा ने 29, श्रीमती पुष्पादेवी पारख ने 44 व श्रीमती मनोहरी बाई ने 35 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
आचार्यश्री की पावन सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम का 12वां वार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन ‘मैं हूं अपना भाग्य निर्माता’ का शुभारम्भ हुआ। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री निर्मल कोटेचा आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए अपने कार्यकाल की रिपोर्ट भी प्रस्तुत की। तत्पश्चात् टीपीएफ गौरव अलंकरण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के न्यायाधीश श्री गौतम चोरड़िया को प्रदान करने की घोषणा की।
श्री निर्मल चोरड़िया ने अभिनन्दन पत्र का वाचन किया। अलंकरण प्राप्त करने के लिए न्यायाधीश श्री गौतम चोरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे जीवन के उतराव और चढ़ाव में आचार्यों की शक्ति ही सहारा बनी है और मैं जो कुछ भी हूं आप सभी गुरुओं के आशीष से ही बन पाया हूं। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री रजनीशकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री सीएल नाहर ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अधिवेशन के मुख्य अतिथि के तौर पर आचार्यश्री की पावन सन्निधि में पद्मभूषण डाॅ. पी.एम. हेगड़े भी उपस्थित थे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए श्रीचरणों की अभिवन्दना की। इस अधिवेशन में उपस्थित संभागियों को साध्वीवर्याजी ने उद्बोधित किया।
आचार्यश्री ने पावन सम्बोध प्रदान करते हुए कहा तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम मानों एक रत्नों की माला है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के रत्न एक माला में रूप में हैं। बौद्धिकता के अनेक तत्त्व इस फोरम में प्राप्त हो सकते हैं। इस फोरम के पास बौद्धिकता का बल है। इस माला की उपयोगिता बढ़ती जाए। श्री तनसुख बैद ने स्वलिखित पुस्तक ‘बुढ़ापा परेशान तो नहीं कर रहा’ श्रीचरणों में उपहृत की।
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