नार्थ टाउन में प्रतिदिन नवकार कलश जाप
यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी म सा ने बताया कि साधना धर्म का मूल है। दो प्रकार के साधक है। एक साधु-साध्वी जो सदाकाल आत्म साधना में लीन रहते है उनका लक्ष्य अष्टकर्मो से मुक्त होना है।
दुसरे श्रावक श्राविका भी उसी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते है पर थोड़ा भय रहता कि मैं कर पाऊगा या नहीं गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी श्रावक विवेकपूर्वक विनयपूर्वक यदि जिनवाणी का श्रवण करे उसे आचरण में लाये तभी वह श्रावक की श्रेणी में आयेगा। कई श्रावक व्रत नही लेते क्योंकि वे श्रावक के व्रतों से भी डरते है उनका चिन्तन रहता कि कहीं व्रत लेकर मै पालन नही कर पाया व्रत खंडित हो गया तो पाप लगेगा।
व्रत के बिना त्याग करना व्रत के साथ पालन करने से धर्म में ढृढ़ता आती है धर्म क्रिया का साम्थर्य बढ़ता है। यदि कार चलाते हुए एक्सीडेंट हो जायें तो कार में बैठना या चलाना छोड़ते है क्या? वैसे ही भगवान जानते है कि व्रत धारण करने पर खंडित होने की संभावना है इसलिए भगवान् ने व्रत में लगे अतिचारों को दूर करने के लिए दोष, आश्रव को दूर करने लिए देवसिय – राइसिय प्रतिक्रमण बताया है।
प्रतिक्रमण करने से न कर्मो का बन्ध होता है न जीवों की विराधना होती है। प्रतिक्रमण में व्रतों का प्रतिलेखन करते समय व्रतों में लगे दोषों का भान होने पर गुरुदेव के पास जाकर उन दोषों की आलोचना कर प्रायश्चित कर लेना चाहिए।
गुरुदेव प्रायश्चित देकर आपके मन को शान्त कर देते है। यदि व्रत लेकर, स्मृति रहते हुए भी कोई जान बूझ कर व्रत का पालन न करे तो व्रत खंडित हो जाता है तब ऐसी स्थिति में गुरुदेव के पास जाकर प्रायश्चित लेकर नया व्रत लेना चाहिए। जाने-अनजाने में दोष लगे तो वह नरक आदि दुर्गति में नहीं जाता परन्तु व्रत नही लेने वाले खुला का आस्रव खुला रहता है वो महापापी कहलाता है वो दुर्गति में जाता है। इसलिए भगवान ने अनुकम्पा करते हुए जिन धर्म का निरुपण किया स्वरूप समझाया पाप से कैसे बचना ये हमें सर्वज्ञ, सर्वदर्शी ने बताया।
तीर्थकंर सम्पूर्ण लोक का मंथन करते है इसलिए वो इतनी तपस्या करते है इतना पुरुषार्थ करते है। लोक मंथन के लिए अनन्त शक्ति, अनन्त वीर्य चाहिए ये साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं। 5 मिनट का ध्यान भी साधरण व्यक्ति के लिए मुश्किल है।
तीर्थकंर 6 महीने साल भर उससे भी अधिक समय तक साधना करते है और लोक मंथन कर जो नवनीत ज्ञान उन्हे मिलता वो अनुकम्पा करते हुए हमें बता कर गये है हमें तो मात्र व्रत प्रत्याख्यान का पालन करना फिर भी हम व्रत लेने के लिए सख्त मना करते हैं जबकि जितना ज्यादा त्याग करोगे, व्रत व्याख्यान करोगे तो मोक्ष मार्ग पर आरूढ़ होंगे । इस लिए जो आप उपयोग नही करते उनका अवलोकन कर उसका त्याग करो।
फिर धीरे-धीरे आवश्यक साधनो का भी त्याग करो क्योंकि जिनधर्म तो पाप से निवृत होना है। इसलिए त्याग, प्रत्याख्यान को बढ़ाते हुए आत्मा को हल्का करो। रुचिपूर्वक प्रत्याख्यान का पालन करो। पाप का त्याग करने से भय मुक्त होते है स्वयं अभयी बनो और अन्य जीवों को भी अभयदान दो।
अध्यक्ष अशोक कोठारी ने बताया कि चातुर्मास में नवकार महामंत्र जाप प्रतिदिन दो घंटे तक नार्थ टाउन में तक अलग अलग घरों में किया जाता है।