साध्वी जी ने बाहुबली के उदाहरण से सिद्ध की अपनी बात, कहा- कषाय मुक्ति के बिना अर्थहीन होती है आराधना
Sagevaani.com @शिवपुरी। धर्म के जो भी कार्य हैं जैसे प्रभु स्मरण, संवर, सामयिक, प्रतिक्रमण उन्हें आराधना कहा जाता है, लेकिन जब तक इस आराधना में साधना का समावेश नहीं होता है तब तक सिद्धि संभव नहीं है। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली ने एक वर्ष तक उत्कृष्ट आराधना की, लेकिन उनकी आराधना में साधना का समावेश ना होने से वह मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाए, परंतु जैसे ही वह अभिमान रूपी हाथी से नीचे उतरे वैसे ही एक ही क्षण में उन्हें सिद्धि मिल गई। उक्त बात प्रसिद्ध साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आज पोषद भवन में आयोजित धर्मसभा में साउदाहरण समझाइश देते हुए बताई।
धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने बताया कि धर्म उसी के हृदय में निवास करता है जो दूसरों की पीड़ा को समझ सकता है। आज की धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी के मामा पक्ष श्रीमती गजरा बाई शांतिलाल बंम परिवार के लोगों ने धर्मसभा में उपस्थित होकर जिनवाणी का श्रवण किया और जैन साध्वियों के दर्शन किए। इस परिवार ने आज लकी ड्रा का भी लाभ लिया।
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आराधना क्या है, साधना क्या है? इसे जैन शास्त्र में वर्णित एक सटीक उदाहरण से स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि भगवान ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहते थे, लेकिन उनकी इस लिप्सा में उनके छोटे भाई तक्षशिला नरेश बाहुबली बाधक थे। उनका कहना था कि दृष्टि युद्ध, बाहु युद्ध और मल्ल युद्ध कर मुझ पर विजय प्राप्त करो और चक्रवर्ती सम्राट बन जाओ। साध्वी जी ने बताया कि मल्ल युद्ध के समय भरत का प्रहार बाहुबली सहन कर गए। इसके बाद बाहुबली को मौका मिला और उन्होंने जैसे ही भरत को मारने के लिए अपना हाथ उठाया और उनके सिर पर प्रहार करना चाहा, उसी समय उन्हें याद आया कि भरत मेरे बड़े भाई हैं मैं कैसे उन पर हाथ उठा रहा हूं, लेकिन जो हाथ ऊपर उठ गया था वह कैसे नीचे जाता।
इस पर बाहुबली ने उठे हुए हाथ से अपने सिर का पंचमुष्टिलोच किया और वह साधु बन गए। साधु बनने के बाद उन्हें साधु भगवंत अपने सांसारिक पिता ऋषभदेव के पास जाना था, लेकिन मन में एक बात थी कि मुझसे पहले मेरे कई छोटे भाई प्रभु के समक्ष दीक्षित हो गए हैं मुझे उन्हें प्रणाम करना होगा, यह कैसे मैं कर पाऊंगा। इसलिए वहीं खड़े होकर वह ध्यानस्थ हो गए। एक वर्ष तक कठोर तपस्या की, पक्षियों ने उनके शरीर पर घोंसले बना लिए, लेकिन वह टस से मस नहीं हुए। गर्मी, बरसात और सर्दी सहन करते रहे, परंतु केवल्य ज्ञान नहीं हुआ, क्योंकि मन में अहंकार था। साध्वी जी ने बताया कि उन जैसी उत्कृष्ट आराधना करने वाले विरले ही होते हैं, लेकिन साधना के अभाव में उन्हें ज्ञान नहीं प्राप्त हो रहा था। इसके बाद उनके पिता ऋषभदेव भगवान ने अपनी दोनों पुत्रियों ब्राह्मी और सुंदरी को भेजा तथा उनसे कहा कि अपने भाई को अहंकार रूपी हाथी से उतारो।
दोनों बहनों ने जैसे ही उनसे कहा कि भाई हाथी से उतरो तो बाहुबली समझ गए कि किस हाथी की बात हो रही है और उनका अहंकार गल गया तथा एक ही क्षण में वह केवल्य ज्ञान को प्राप्त हो गए।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि एक वर्ष की उत्कृष्ट आराधना में जब एक पल की साधना का समावेश होता है तभी सिद्धि संभव होती है।