जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने जैनआचार्य श्री देवेंन्द्र मुनि जी के पंच दिवसीय जयंति महोत्सव पर आज प्रथम जाप दिवस पर बोलते हुए कहा कि साधना के महामार्ग पर आगे बढ़ने के लिए जप व तप का करना अतिआवश्यक है! साधक की पहचान ही इन्ही मार्गो से होती है! जप के नानाभांति भेद शास्त्रों मे उल्लंखित है उनमे से प्रमुख तीन भेद भावय जाप जो जोर से उच्चारण के साथ संम्पन्न किया जाता है जिसकी ध्वनि से वातावरण पवित्र बनता है एवं अनेक प्रकार के रोग शोक शान्त होते है! जिसे वर्तमान मे सामूहिक जाप से जाना जाता है!
जो वायुमंडल को अपने शब्द तरंगों से व्याप्त कर देता है सामूहिक जप मे आने वाले भक्तजनो साधको गुरुजनों के प्रबल पुण्य का भी प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता, एक भी पुण्य पुरुष उसमें सम्मलित होता है तो उसका लाभ सभी को प्राप्त होता है! चंदन फूल इत्र की सुवास की भांति जाप की सुवास भी बाहरी व आंतरिक कष्टों का निवारण करने मे सक्षम बन जाता है! भावय जाप के साथ ही दूसरा जाप उपाशु जाप कहलाता है जिसमें जपने वाले के मंद स्वर मे उच्चारण होते रहते है होठों से धीमे स्वर मे शब्दों का मंत्रो का धीमी गति से ऊर्जा का जागरण होता है इससे स्व पर दोनों को लाभ पहुँचता है एवं मानसिक ऊर्जा जागृत होती है!
इसी प्रकार तीसरा जप मानसिक जाप के नाम से विख्यात है जो निरंतर कार्य करते हुए भी मन मे रचा पचा रहता है बाहरी किर्याए भी चलती रहती है पर नाम स्मरण भीतर ही भीतर खाते पीते सोते जागते भी चलता रहता है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नमो आयरिया नम का सस्वर सामूहिक जाप करवाया गया साथ ही आचार्य देवेन्द्र मुनि जी के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन संसमरण बतलाए गए! धनतेरस के दिन जन्म लेने से उनका बालपन मे नाम धन्ना लाल रखा गया जो सन्यास के बाद आचार्य देवेन्द्र के नाम से विशव विख्यात बने! सभा मे महामंत्री उमेश जैन द्वारा सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई।