चेन्नई. जब भी, जहां भी सौंदर्य को उपमित किया जाता है तो चन्द्रमा की उपमा दी जाती है। यूं तो चन्द्रमा की कलाएं घटती-बढ़ती रहती हैं, लेकिन पूर्णिमा की रात को चांद पूरा होता है। वैसे हर महीने पूर्णिमा आती है परंतु उन सब में शरद पूर्णिमा का अपना ही महत्व है। इस दिन केवल चांद और चांदनी के सौंदर्य को ही न निहारें अपितु उस समय को अधिक से अधिक जप ध्यान व साधना में बिताएं। यह विचार- ओजस्वी प्रवचनकार डॉ.वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में श्रद्धालु जनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा शरद पूर्णिमा की रात्रि में मंत्र जाप करने से जीवन में सुख-शांति व समृद्धि की प्राप्ति होती है। आप जिन भी भगवान, गुरुदेव या इष्ट देव को मानते हैं उनका शुद्धि पूर्वक व श्रद्धा पूर्वक जाप करें।
यदि आप चन्द्रमा को देखकर ध्यान करें तो यह विशेष लाभकारी होता है। जो लोग मन को शांत व एकाग्र बनाना चाहते हैं, उन्हें अवश्य ही इस (आज की) रात में मंत्र साधना व ध्यान साधना के प्रयोग करने चाहिए। प्रभु महावीर जीवन गाथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा जब हम प्रभु महावीर के जीवन चरित्र को पढ़ते हैं तो पाते हैं कि लगभग साढ़े बारह वर्षों तक उन्होंने साधना की, जिसके फूल स्वरूप उन्हें ब्रह्मज्ञान यानी केवल ज्ञान प्रगट हुआ। उनके साधना काल में ध्यान साधना ही प्रमुख रही अत: हम भी आत्म ध्यान करने का प्रेरणा लें।
गुरुदेव ने कहा ध्यान तो पश्चिम के देशों में भी आज खूब जोर-शोर से किया जा रहा है परंतु उनका स्तर केवल देहिक और मानसिक क्षेत्र तक अधिक सीमित है। उनका है मानना ध्यान से चेहरे पर चमक आती है, टेंशन – डिप्रेशन- तनाव- अनिद्रा आदि से छुटकारा मिलता है या कन्सनट्रेशन बढ़ती है, इस कारण वे लोग ध्यान करते हैं।
परंतु भारत में ध्यान का मुख्य लक्ष्य है आत्म तत्व को जानना और शरद पूर्णिमा की रात में प्रकृति भी आपकी सहायक होती है। अत: इस रात्रि में जितना अधिक समय तक आप लोगस्स जप, नवकार मंत्र, आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्र प्रभु भगवान का या अपनी मान्यता-परंपरानुसार अपने – अपने ईष्ट मंत्र का जाप व ध्यान करें, उतना ही आपके लिए कल्याणकारी होगा।