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साधना का लक्ष्य वीतरागता को प्राप्त करना: कपिल मुनि

साधना का लक्ष्य वीतरागता को प्राप्त करना: कपिल मुनि

चेन्नई. विरुगमबाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित कपिल मुनि ने कहा संसार में व्यक्ति जिस जीवन का ताना बाना बुन रहा है उस जिन्दगी का एक एक कदम चुनौतीपूर्ण है। जीवन में संभल कर चलने वाला ही सफल होता है गफलत और बेहोशी का जीवन जीने वाले फिसल जाते हैं।

धर्म की पहली नसीहत यही है कि संभल कर चलो। इस धरती पर मनुष्य ही विशिष्ट शक्तियों से सम्पन्न है व उसके पास जीवन मूल्य भी है। अन्य प्राणियों के पास सिर्फ जीवन व शक्ति है है जबकि मनुष्य के पास शक्ति के साथ समझ शक्ति भी है। जीवन उसी का महान और सफल होता है जो प्राप्त शक्ति, संपत्ति और संसाधनों का सही उपयोग करते हैं

उसका दुरुपयोग अनर्थ का कारण है जिससे बचने का प्रयास विवेकशील मनुष्य को करना चाहिये। चातुर्मास के स्वर्णिम पलों में वीतराग वाणी के श्रवण का ध्येय भी बेहोशी को दूर करना है । इस संसार भी वे सभी प्राणी बेहोश हैं जिन्हें इस बात का पता नहीं कि मैं कौन व कहां हूं और क्या कर रहा हूं।

अपने स्वरूप को समझ कर ही कोई जीवन के सत्य पर विश्वास कर पाता है। जीवन का सबसे बड़ा सत्य यही है कि जो जन्मा है वो अवश्य मरेगा, जो जैसा करेगा वैसा भरेगा । इस सत्य को नजर के समक्ष रखकर चलोगे तो जीवन पाप और दोष से मुक्त हो जायेगा। दोष मुक्त जीव ही दु:ख से मुक्ति और छुटकारा प्राप्त करता है।

धर्म क्रियाओं के नाम पर छोटी छोटी बातों पर उलझ कर कषाय वृद्धि करना धर्मात्मा का लक्षण कतई नहीं हो सकता। धर्म का सम्बन्ध किसी पंथ और संप्रदाय से नहीं अपितु चित्त की शुद्धता से है। व्यक्ति द्वारा की जाने वाली धर्म साधना का लक्ष्य वीतरागता को प्राप्त करना है।

इसकी प्राप्ति तभी संभव होगी जब व्यक्ति का मन कषाय से शून्य होगा। रविवार को सवेरे 7.30 से 9 बजे तक निर्देशन में सर्व सिद्धि प्रदायक विघ्न बाधा विनाशक भक्तामर स्तोत्र जप अनुष्ठान होगा व प्रवचन दोपहर 2.30 बजे से होगा। संचालन महावीरचंद पगारिया ने किया।

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