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ज्ञान वाणी

साधना का मूल आधार है आस्तिक विचारधारा: आचार्यश्री महाश्रमण

साधना का मूल आधार है आस्तिक विचारधारा: आचार्यश्री महाश्रमण
तमिलनाडु: चेन्नई महानगर के माधावरम में चतुर्मास प्रवास कर रहे अहिंसा यात्रा प्रणेता महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ से अपनी अमृतमयी वाणी से उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि जैन दर्शन आत्मवादी और पुनर्जन्मवादी दर्शन है। जैन दर्शन में आत्मवाद का सिद्धांत है। दो प्रकार की विचारधाराएं होती हैं-आस्तिक विचारधारा और नास्तिक विचारधारा।
आस्तिक विचारधारा, आत्मा, पुनर्जन्म, मोक्ष और पाप-पुण्य का फल, नरक-स्वर्ग इन विषयों में विश्वास व्यक्त किया गया है, इन विषयों का वर्णन भी किया गया है। नास्तिक विचारधारा पुनर्जन्म को न मानना, आत्मा को नहीं मानना, स्वर्ग-नरक, मोक्ष आदि न मानने वाले और आत्मा के शाश्वत अस्तित्व को नकारना नास्तिक विचारधारा होती है। नास्तिक विचारधारा में तो विशेष रूप से कुछ भी करणीय शेष नहीं रहता है, क्योंकि जब आत्मा का अस्तित्व ही नहीं तो फिर ध्यान, साधना, अध्यात्म आदि की बात ही कहां हो सकती है।
आस्तिक विचारधारा आध्यात्मिक साधना का मूल आधार है। पुनर्जन्म है, आत्मा का शाश्वत अस्तित्व है, मोक्ष है तो इतनी गहरी आध्यात्मिक साधना का सार्थकत्व है। अगर पुनर्जन्म है ही नहीं, इतनी अध्यात्म की साधना की संभवतः अपेक्षा ही न हो। आदमी को आस्तिक विचारधारा में जीने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने चारित्रात्माओं को भी पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि धन्य होते हैं वह बालमुनि जो कम अवस्था में ही साधुत्व को स्वीकार कर लेते हैं। चैथे आचार्य जयाचार्य, गणाधिपति गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी आदि ने भी बहुत छोटी उम्र में ही साधु बन गए थे। साधु को अपनी साधना को पुष्ट बनाने के लिए महाव्रतों व समिति-गुप्तियों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु जागरूकता के साथ चले तो चलने में साधना, बोलने में साधना, भोजन-पानी लेने में साधना हो सकती है। साधु को सावद्य भाषा के प्रयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को भाषा में प्रमाणिकता रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु अपनी एषणा समिति के प्रति भी जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। ध्यान रखने और जागरूकता रहने से अनावश्यक रूप से होनी वाली हिंसा से भी बचाव हो सकता है। इसप्रकार समिति-गुप्तियों के प्रति जागरूकता से साधु अपने महाव्रतों की सुरक्षा कर सकता है। चतुर्दशी का अवसर होने के कारण आचार्यश्री ने हाजरी पत्र का वाचन किया। उपस्थित चारित्रात्माओं द्वारा लेखपत्र का वाचन किया गया। आचार्यश्री ने बालमुनियों और साध्वियों को विशेष रूप से पावन प्रेरणा भी प्रदान की।
कार्यक्रम में आचार्यश्री मुमुक्षु शुभम आच्छा को ग्यारह नवम्बर को होने वाले दीक्षा समारोह में मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। श्री विनोद पुनमिया व श्रीमती सविता पुनमिया ने सजोड़े मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के आॅडिटोरियल डायरेक्टर व पद्भूषण प्राप्त श्री प्रभु चावला ने आचार्यश्री के दर्शन और मंगलवाणी का श्रवण करने के पश्चात् अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि यह मेरा परम सौभाग्य है कि जो आज मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संत का दर्शन प्राप्त हुआ है। आचार्यश्री आपकी अहिंसा यात्रा वास्तव में लोगों का कल्याण करने वाली है। आपकी यह विशाल पदयात्रा ऐतिहासिक है। आपने जो मूल रूप से अहिंसा का सिद्धांत दिया है, यह लोगों के दिल में उतर जाए तो कितनी शांति हो जाएगी। आज आपकी मंगलवाणी का श्रवण करने के पश्चात् मुझे आस्तिक और नास्तिक विचारधारा का वास्तविक और सूक्ष्म दर्शन प्राप्त हुआ है। आपके अणुव्रत के ग्यारह नियम विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में बताए जाएं तो आपकी संकल्पना और व्यापक हो सकती है। आपकी यात्रा बहुत ही प्रभावक है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत महासमिति द्वारा अणव्रत लेखक पुरस्कार वर्ष 2017 श्री महेन्द्रकुमार जैन को प्रदान किया गया। अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री अशोक संचेती, महामंत्री श्री राकेश नाहटा आदि पदाधिकारियों द्वारा स्मृति चिन्ह आदि प्रदान किया गया।

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