स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई
विश्व हितेषी प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, दीक्षा दानेश्वरी श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन के अंश
🪔 *विषय : जन्म गुरु वैभवरत्न बने प्रभु जन्म*🪔
~ जिनके भीतर में प्रभु बनने की प्यास और पुरुषार्थ सर्वश्रेष्ठ है वह भक्त अवश्य भगवान बनता ही है।
~ साधक सत्य की खोज के लिए, और पाने के लिए प्रबल पराक्रम करता ही है।
~ हमें यदि आत्म कल्याण पसंद है और अनुसरण भी है तो हमारे जीवन में सर्वस्व बलिदान के लिए प्रतिपल तैयारी होनी ही चाहिए।
~ पराई चीजे, पराई व्यक्ति, पराई घटना, को कब तक मेरा मानना चाहिए।
~ समाधि भाव में रहना वह महा ज्ञान का हिस्सा, महा लोक की यात्रा है।
~ मुक्ति के अंश को पाने की पूर्ण भावना भक्त को हर पल मुक्ति में ही रखता है वह ही समाधि भाव है।
~ पुद्गल से अनासक्ति होने का भाव ही परम समाधि है और भक्त ऐसा भाव मृत्यु के समय ही नहीं किंतु प्रतिपल रखता ही है।
~ जैन दर्शन की महान साधना 1.)स्वभाव परिवर्तन के लिए कठिन निर्णय 2.)हरपल समाधान 3.)मन का नाश करना वह प्रबल आत्मलक्षि को ही हो सकता है।
~ साधक जागरण दशा में हर पल अनेक कर्मों का क्षय करता ही है।
~ जो समाधि भाव में रहने के लिए हर पल तैयार वह केवल ज्ञान की यात्रा मे है।
~ साधक मान, अपमान, निंदक- वंदक, सभी दशा में समाधि में ही रहता है।
~ आत्मा और देह की भिन्नता का ज्ञान जो सत्य को मानता है वही कर सकता है।
~ मान और सम्मान साधक को छू भी नहीं सकते तो असर होने की बात ही नहीं है।
~ चेतन की जागृति पूर्व के अनंत भवों में एक पल के लिए भी नहीं आई तो अब इस भव में तो कैसे भी करके उसे पाना ही है, व्यर्थ प्रमाद नहीं ही करना है।
~ विश्व वंदनीय प्रभु श्री राजेंद्र सुरीजी सद्गुरु भगवंत ने हजारों सालों और हजारों साधकों से जो कार्य न हो सका ऐसा अनुपम अद्वितीय क्रियोद्धार का शंखनाद समग्र विश्व में किया था।
~ प्रभु राजेंद्र सूरी जी सदगुरु देव ने 14 1/2 साल तक अखंड ज्ञान साधना से इस विश्व को अनंत काल तक सुख, शांति, समाधि में रखने वाला अलौकिक श्री अभिधान राजेंद्र कोष की रचना का दान दिया।
~ परम पूज्य जयंतसेनसुरी जी के कृपापात्र सुशिष्य रत्न श्रुत प्रभावक मुनिराज श्री डॉक्टर वैभवरत्न विजय जी महाराज ने सूरत नगर में शलाका परीक्षा से श्री अभिधान राजेंद्र कोष को कंठस्थ किया और सभी भक्तों के हृदय में ज्ञान की महिमा को अंकित किया।
~ श्रुत प्रभावक मुनिराज श्री डॉक्टर वैभव रत्न विजय जी महाराज ने सभी संघो में अर्हम् और गुरुदेव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को स्थापित किया।
~ पू. श्रुत प्रभावक मुनिराज श्री वैभवरत्न विजय जी महाराज ने समग्र जैन समाज श्री अभिधान राजेंद्र कोष को सरलता से अध्ययन कर सके इसीलिए संपूर्ण श्री अभिधान राजेंद्र कोष का अनुवादन का कार्य प्रारंभ किया है।
~ पू.श्रुत प्रभावक डॉक्टर मुनिराज श्री ने kenya में biology के विषय में P.H.D की थी उनका केवल एक ही उद्देश्य था कि समग्र जैन समाज ज्ञान से जुड़े और स्वयं की आत्मा का कल्याण करें।
*”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*
🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪