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साधक यदि विवेक पूर्वक जीवन चर्या अपना ले तो उसका जीवन ही धर्म बन जाता है: पुज्य जयतिलक जी म सा

साधक यदि विवेक पूर्वक जीवन चर्या अपना ले तो उसका जीवन ही धर्म बन जाता है: पुज्य जयतिलक जी म सा

रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि दैनिक जीवन चर्या में यदि साधक विवेक पूर्वक जीवन चर्या अपना ले तो उसका जीवन ही धर्म बन जाता है। व्रत = तीन अक्षरों में व शब्द का अर्थात विनय, विवेक, विश्वास। र से रक्षा। त अर्थात तोड़‌ना। पूर्व बर्हद कर्म को तोडना। विनय ही मोक्ष को साधता है। विनय के बिना ज्ञान ग्रहण नही होता और सूनने के बाद विवेक पुर्वक व्रत लो। विवेक से पाप भी पुण्य में बदल जाता है। मर्यादा भी हो जाति है। व्रत के प्रति विश्वास होना भी आवश्यक है। यदि धर्म के प्रति, व्रत के प्रति, स्वयं के प्रति, विश्वास हो तो ही धर्म आचारण कर सकता है।

गुरु वचनो पर पूर्ण विश्वास आवश्यक है। इसलिए भगवान ने जीवों को तारने के लिए, कर्म बांधन को तोड़ने के लिए व्रत का निरूपण किया! व्रत अनादिकालीन कर्मों को तोडने में बडा सहायक है। मोक्ष मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए भगवान ने खाते पीते, आराम से जीवन यापन करते हुए मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो इसलिए व्रत बनाये। जैसे समुद्र अपनी मर्यादा में रहता है वैसे ही आप भी मर्यादा में रहो तो आपकी एवं अन्य जीवों की सुरक्षा है। अतः 26 बोलों की मर्यादा होती है त्याग नहीं। क्योंकि इनके बिना जी नहीं सकते। यदि अंतिम समय आ गया तो ? इन 26 बोलो का पुर्ण त्याग कर लो । आप भी सुख से जीवो और सभी जीवों को सुख से रहने दो।

अतः यह व्रत प्रत्याखान धारण करो! धबराओ मत। आप संसार में रहते हुए कर्म बंधना से बचते तो स्वयं भी सुखी रहे एवं दुसरो को भी सुखी रखो। व्रत धारण करने के पश्चात बार बार उन व्रतो की प्रतिलेखना करो। व्रत धारण के पश्चात अन्य को भी प्रेरणा करो।

ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए सूचना दी कि दि: 24/08/2022 से 31-8-2022 बुधवार तक जैन भवन, रायपुरम मे श्री एस एस जैन ट्रस्ट रायपुरम द्वारा पर्यूषण पर्व में अंतगढ सुत्र वांचन: सुबह 8:45 से 9:15 तक, प्रवचन: 9:15 से 10:15, धार्मिक क्लास व प्रतियोगिता 10:15 से 11, कल्प सुत्र वांचन: दोपहर 2 से 3, सूर्यास्त के पश्चात प्रतिक्रमण होंगे।

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