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साधक पहले वह जीवन में करता है फिर उपदेश देते है: प्रकाश मुनि जी मासा

साधक पहले वह जीवन में करता है फिर उपदेश देते है: प्रकाश मुनि जी मासा

पूज्य प्रर्वतक श्री प्रकाश मुनि जी मासा. →

*सोभाग्य – नाम सुखधाम, सुबोधिदाता

दुष्कृत्यवारक जगत्प्रय-ताप-त्राता

निर्ग्रन्थरत्न- परमं करुणा-निधानम्, सोभाग्य सदगुरुवरं शिवद स्मरामि ।।1।।

डॉ ललित प्रभा जी गुरुदेव श्री सोभग्यमल महारासा के लिये कहते है कि ..आप दुष्कृत्यों के मारक थे, आप दुष्कृत्यों का निवारण करते हे, निवारण वहीं कर सकता है जो वह कृत्य नहीं करता। साधक पहले वह जीवन में करता है फिर उपदेश देते है। जो बात बोलने योग्य, नहीं है वह तीनो प्रकार की करणी से नहीं करता है।

आचारांग सूत्र :- *निविदं नंदि* संसार के अमोद प्रमोद कार्य का छेदन करना।

जो कार्य कर्म बंधन के कारण है उनसे घृणा करना है । अभ्यन्तर परिग्रह 6 है *जुगुप्सा*- (घृणा ) किसी भी पापी से घृणा नहीं करना.. पाप से घृणा करना है। ज्ञानियों की दृष्टि कारण पर जाती है,सामान्य की दृष्टि कार्य पर जाती है। कारण हे तो कार्य होगा, !!कारण ही नहीं तो कार्य होगा नही।। वितराग की दृष्टि *कारण* पर होती है। किसी भी जीव से घृणा मत करो, इसके मोह अशुभ कर्म का उदय है, उसको वीवेक नहीं है इसलिए पाप कर रहा है।

*बाल-दशा*- अज्ञान दशा – बालक साप को पकड़ने की कोशिश करता है वह नही जनता की क्या करेगा? अज्ञानी जीव दृष्टत्य जान करके करते हे वह ज्ञानी नही#

*ज्ञानी अक्रत्य करता है, अज्ञानी अकृत्य छोडता नहीं* श्रावक देवलोक में जाते हैं संसारी नरके तिर्यन्च में जाते है ,जो पाप से घृणा करे वह श्रावक, जो पाप को अच्छा माने वह संसारी गृहस्थ ।

जो संसार के प्रवाह को रोके, संसार के अमोद प्रमोद से घृणा करे वह श्रावक , श्रावक तप त्याग से पर्युषण मनाते हैं। आठ शुद्ध आत्म आराधना के लिये, मनकी मोज अमाद, प्रमाद छोड़ दे, आत्मा के साथ जीये, इंद्रियों के साथ नहीं जीना। आत्मा के साथ जीने वाला आनन्द करता है।हमारी दृष्टि देहिक दृष्टि है घृणा कर पाप से, पाप से घृणा करने वाला तीर जाता है ओर पापी से घृणा करने वाला डुब जाता है।

*मोह* भान खत्म करता है ज्ञानी उसके आने वाले दुःख का चिंतन करता है कारुण्य भाव, अनुकंपा भाव रखता है ।

संगम देव के आने वाले दुखो को देखकर भगवान को आंसू आ गये.. यह आंसू मेरे लिये नहीं यह तेरे लिये, जिसने दुःख दिया उसके लिये! करुणा पैदा हुई, $

 हमारी वेर की भावना, रोद्र भाव, वह जाय के नहीं हमने नरक जाने की तैयार कर ली।

वो हारेगा कर्म से ..हम दुर्भाव करके हारते चले जायेंगे।

किसी ने हमारी बुराई करी? उसका भला सोचेंगे की घृणा

करेंगे?

*ज्ञ परिज्ञा प्रत्याख्याना परिज्ञा*- ज्ञान से जाने त्याग करके उस कार्य को छोड़ दे।

 ज्ञान करके छोडना, समझना हे *अभ्यान्तर परिग्रह जुगुप्सा* यह कषाय पैदा करने की ताकत रखती है, घृणा दुर्भाव है वह व्यक्ति सामने आया दिमाग की स्थिति अलग हो जाती है।

किस्सा. बादशाह अकबर का उदाहरण – बीरबल की हंसी

अच्छे आदमी अच्छे करम करता है, गुस्सा छुट जायगा तो सारी कषाय चली जाएगी।

पाप से घृणा कर! जितना प्यार पाप से है उतना पुण्य व धर्म से नहीं ? पत्नी, पद, पैसे, पुत्र, पोत्र से प्यार है, परिवार, परिजन से प्यार है कि नहीं, प के चक्कर मैं परमात्मा छुट गये, दुनिया की हर चीज से प्यार है, पाप से प्यार है, परिग्रह से प्यार है, बाहर का अन्दर का परिग्रह प्यारा *प* का चक्कर संसार में भटकता है ..

 सारा जीवन अब तेरे हवाले, या मेरा बन जा अपना बनाले मस्ती में उड़ रहा तिनका पतंग हो गया, ,,प्रेम जब अनन्त हो गया, रोम, रोम संत हो गया…

जो प्रभु परमात्म तत्व से जुड़ा वह तिनका पतंग बन गया, तिनके का भविष्य नहीं, पंतग का भविष्य श्रद्धा की डोर से जुड़ी है, हम तुमसे जुड़ गये दुनिया मुझे पागल कहती है। हम दुनिया को पागल समझते है।

परमात्मा के प्रति हमारा जीवन समर्पित हो जाए तो वह संसार के जीवों को करुणा की दृष्टि से देखेगा। करुणा का भाव जगता है, में सुख का मार्ग बताऊँ वह वाणी का अमृत दान करते है, रोम रोम संत हो गया हर एक जीव के लिये करुणा होती है। घास में, पानी में मजा लेते है उनमें कीव नहीं है क्या?

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