रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि सात व्रत के पच्छखान हो चुके है आठवें व्रत का धारण कर लो ! शिक्षा व्रत में सामायिक व्रत जिसमें बाल आत्मा को शिक्षित किया जाता है। जैसे प्ले स्कूल में बच्चों का। जैसे माता पिता बिना कैसे रहना उसका अभ्यास कराया जाता है वैसे हो बाल आत्मा अभी असंस्कारित है उसे संस्कारित करने के लिए सामायिक संवर किया जाता है! सवंर 15 मिनट से आजिवन का भी हो सकता है! सामायिक 48 मिनट की होती है।
इन दोनो में ही सावध प्रवृत्तियों को त्याग कर निरबध प्रवृत्तियों का अभ्यास कराया जाता है। जब वह 48 मिनट को मन वचन काय को साध लेता है तो फिर सामायिक का अभ्यास निपुण नहीं हो जाता है तब तक दसवें व्रत में प्रवेश नहीं कर सकता है! ऐसी शुद्ध सामायिक में ही कर्म निर्जरा होती है। सामायिक संवर दोनों में ही समान लाभ है। जब आप भंगो में साध लेते है तब सामायिक की योग्यता आती है! जैसे, गाडी चलाना, सीखने वाला पहले खाली सड़क पर चलाता है फिर थोडा अभ्यास हो जाये तो थोड़े वाहन वाली सड़क पर चलाता है और पूर्ण अभ्यास हो जाने को वह धडाक से गाड़ी चलाता है!
अभी हम बाल है इतना मन को नहीं साधा है! जब योग्यता पूरी नहीं है। द्रव्य शुद्धि का ध्यान रखे! मन विचलित नहीं हो इसलिए सम्यक, शांत, धर्मानुकुल एकांत स्थान पर बैठ कर सामायिक करे। जब हमारा मन हर परिस्थति में शांत रहे तब कहीं पर भी बैठ कर सामायिक करो! अभ्यास से निपुणता आती है। सामायिक अकेले में शुध्द होती है समुह में तो मन साधने के बाद होती है! स्वाध्याय करो एवं उन सम्यक बातों का चिन्तन करो। भगवान महावीर जहाँ कहीं पर जाते या उनके सम्मुख अनेक प्रसंग आते तो भी उनकी सामायिक शुद्ध होती क्योंकि उन्होंने स्वयं को साध लिया।
यह जानकारी नमिता संचेती ने दी।