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साक्षात्कार वर्षावास

साक्षात्कार वर्षावास

   *पंचान्हिका महोत्सव*

 विश्व पूज्य, प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, युग प्रभावक श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी महाराज साहब के कृपा पात्र सुशिष्य रत्न, श्रुतप्रभावक मुनिराज श्री वैभवरत्न विजय जी महाराज साहब प्रवचन के अंश.

*विषय: प्रभावक्ता :-best leadership*

~गुरुतत्व महान, उपासनिय, सर्वश्रेष्ठ है वह सामान्य है ही नहीं।

~हमारे विचार यदि क्रांतिकारी है तो हम जो चाहे वह सभी पा ही सकते हैं।

~हमें संसार के बिजनेस, भोजन, आदि सभी क्रियाओं में प्रभु के वचनों को पालना ही चाहिए।

~यदि प्रभु के वचन में श्रद्धा, आचार नहीं तो यह जीवन पूरा निष्फल जानना।

~ प्रवचन :प्रभु के वचनों को समझना, सिद्ध करना, अन्य को श्रद्धा, आचारवाला बनाना।

~पहले लक्ष्य बलवान होना ही चाहिए फिर उसके अनुसार कार्य भी होना चाहिए।

~ अनंत तीर्थंकर प्रभु, गणधर भगवन्त, सभी ने प्रभु के वचनों को पालन किया, पाया।

~ संसार रहे वह साधना, या संसार मिटे वह साधना ?

~ ज्ञानी कहते हैं, जो तेरा है ही नहीं उसके लिए कब तक, कितना, कैसे जुड़ना?

~ आत्मा की अनंतशक्ति, अनेकभावों में अनंत देह मिले लेकिन वह प्रकट नहीं हो पाई थी अब इस भाव में जैन दर्शन से यह अनंतशक्ति प्रकट होनी ही चाहिए।

~ हमारा मन कोई भी स्थिति का कैसे स्वीकार करता है ज्ञान?या अज्ञान?

~ सत्य इस विश्व में एक ही है यह जीवन में मेरा कुछ भी नहीं है।

~ आत्मा शाश्वत है ही और उसकी समर्थ्यता पाने के लिए सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र के मार्ग पर चलना ही पड़ेगा।

~ जो सत्य शाश्वत परम आत्महितकारी है वह वचन केवलज्ञानी भगवान या उनके सम्यक् अनुयाई ही कह सकते हैं।

~ जो केवली प्रभु ने वचन कहे हैं उसका अनंत काल तक कोई भी खंडन नहीं ही कर सकता यह श्रद्धा से हमारी समर्थ्यता को स्वीकार करना ही पड़ेगा।

~ प्रभु बनना यानी 1.कोई भी इच्छा नहीं, 2. कोई भी चीज, व्यक्ति, घटना के प्रति निरासक्त दशा – वह मिले तो राग नहीं और न मिले तो द्वेष नहीं।

~ धर्म कथा के प्रभाव से सभी जीव समाधि में रहे और 2.स्वयं के पापों का निरीक्षण करके मुक्त बने, 3.चेतना का विकास पूर्ण रूप से करें।

स्थल :- श्री राजेंद्र भवन, चेन्नई।*

*निमंत्रक :- श्रीराजराजेंद्र ट्रस्ट चेन्नई।*

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