Share This Post

Featured News / Khabar

सांस हमारी, प्राण गुरु फूंकते हैं: साध्वी श्री इंदुबाला

सांस हमारी, प्राण गुरु फूंकते हैं: साध्वी श्री इंदुबाला

चेन्नई. कांकरिया गेस्ट हाउस  किलपॉक में विराजित श्री हीराचंद्रजी म.सा की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी श्री इंदुबाला म.सा, श्री सुमतिप्रभा म.सा,श्री मुदितप्रभा म.सा आदि ठाणा-१० के चातुर्मास के प्रथम दिन व गुरु पूर्णिमा के अवसर साध्वीश्री मुदितप्रभा म.सा ने ‘जिनशासन की पुकारÓ क्लास  में ‘गुरु कृपाÓ पर उद्बोधन दिया।

उन्होंने गुरु महिमा की विवेचना करते हुए कहा चलना खुद को है लेकिन गति व प्रगति गुरु प्रदान करते हैं। सांस हमारी है पर प्राण गुरु फूंकते हैं।

उन्होंने कहा आज आषाढ़ी पूर्णिमा है, इसे गुरु पूर्णिमा कहा जाता है क्योंकि पूर्णिमा का चन्द्रमा पूर्ण गोल शून्य के आकार का बनता है। जो शून्य बनता है वही पूर्ण बन जाता है। पूर्ण बनने के लिए भीतर से खाली होना पड़ेगा। गुरु हमारी जीवन शक्ति होती है। 

उन्होंने कहा, संत, सड़क, सत्य और सरिता एक की भी बपोती नहीं होती है। गुरु अनहोनी को होनी कर देता है। समर्पण बिना सिद्धि नहीं। मां बिना संसार मेें कैसे आते और गुरु के बिना संसार से कैसे तिर सकते हैं?
गुरु ही दर्पण, गुरु ही धर्म है।

गुरु ही जहां, गुरु समाधान है।
गुरु समष्टि है, गुरु ही व्यष्टि है
गुरु ही सृष्टि,गुरु ही सपना, गुरु ही अपना है।

साध्वीश्री ने कहा गुरु गुणगान के लिए शिष्य की पांच कसौटियां हैं- गुरु के पास रहना, गुरु का प्रेम पात्र बनना, गुरु वचन सुनकर तहति कहना, गुरु नहीं होते तो हम कहां होते, जिसके प्रति प्रीत होती है उसके प्रति भय होता है।

उन्होंने कहा इंसान के लिए गुरु भगवान से कम नहीं होता क्योंकि वही एक ऐसा इंसान होता है जो आपको सही  राह दिखता है। इसलिए गुरु का स्थान सर्वोत्तम माना जाता है। गुरु के बिना जीवन ही शुरू नहीं होता है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar