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सांसारिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक जीवन सुखद बनाने में कारगर है प्रभू की अंतिम देशना

सांसारिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक जीवन सुखद बनाने में कारगर है प्रभू की अंतिम देशना

साध्वी नूतन प्रभाश्री ने उत्तराध्यन सूत्र का किया वाचन

Sagevaani.com/शिवपुरी ब्यूरो। 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने जीवन के अंतिम समय में गौैतम स्वामी को निरंतर 48 घंटों तक देशना दी थी। इसी देशना को उत्तर अध्ययन सूत्र के रूप में संग्राहित किया गया है। भगवान महावीर की अंतिम देशना को अपने जीवन में उतारकर सांसारिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने उत्तराध्यन सूत्र का वाचन कर और उसकी व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। धर्मसभा में इंदौर और धार से पधारे जैन श्रावकों का जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ की ओर से बहुमान किया गया।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्यन सूत्र में 32 आगमों का सार है। उत्तराध्यन सूत्र जैन धर्म की गीता है।

उन्होंने बताया कि उत्तराध्यन सूत्र में 36 अध्याय है और प्रथम अध्याय में बताया गया है कि विनय धर्म का मूल है। विनय की आधार शिला पर ही धर्म के शिखर पर पहुंचा जा सकता है। साध्वी जी ने कहा कि विनय की उपयोगिता आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों जगत में है। संसार में भी हमें किसी से काम करवाने के लिए विनय की आवश्यकता होती है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर ने अपनी अंतिम देशना में उपदेश दिया था कि अपने कान को सडऩे मत देना। इसका अर्थ यह है कि अपने कानों से किसी की बुराई औैर आलोचना नहीं सुनी जानी चाहिए। गुरूजनों के प्रति अपमान जनक बात भी कानों से नहीं सुनना चाहिए। इससे पूर्व साध्वी जयश्री जी औैर साध्वी वंदना श्री जी ने सुमधुर स्वर में वीर की गाथा सुनकर हम वीर राग वरसाऐं हम महावीर बन जाऐं, भजन का गायन किया।

इंदौर पब्लिक स्कूल के संचालक अचल चौधरी का हुआ सम्मान

साध्वी रमणीक कुंवर जी के दर्शन वंदन और धर्मसभा सुनने के लिए इंदौर के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल आईपीएस के मालिक अचल चौधरी शिवपुरी आए। उन्होंने गुरूणी मैया से आशीर्वाद लिया। उनका औैर साध्वी गरिमाश्री जी के सांसारिक भाई राजेन्द्र महाजन का जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ द्वारा शॉल श्रीफल से सम्मान किया गया। धर्मसभा में धार जिले के गोलगांव से पधारे सुशील भाई भण्डारी का भी सम्मान हुआ। उनके विषय में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि उन्होंने 1993 में गुरूणी मैया का ऐतिहासिक चार्तुमास अपने गांव में कराया था जहां 23 मासखमण (30 दिन का उपवास) की तपस्याऐं हुई थी। उन्होंने अतिथि सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया था।

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