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सहयोग की भावना ही मनुष्य जाति की उन्नति का मूल कारण रही है : देवेंद्रसागरसूरि

सहयोग की भावना ही मनुष्य जाति की उन्नति का मूल कारण रही है : देवेंद्रसागरसूरि

श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी मुनि श्री महापद्मसागरजी के सान्निध्य में रविवारीय शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। शिविर का संपूर्ण लाभ संघवी महेंद्रकुमारजी चुन्नीलालजी सोलंकी परिवार ने लिया। शिविर के तहत आचार्य श्री ने कहा कि परिवार एक पवित्र तथा उपयोगी संस्था है।

इसमें मानव की सर्वांगीण उन्नति का आधार सहयोग, सहायता और पारस्परिकता का भाव रहता है। यह भाव वह शक्ति है जिसके आधार पर मनुष्य आदि- जंगली स्थिति से उन्नति करता करता आज की सभ्य स्थिति में पहुँचा है। सहयोग की भावना ही मनुष्य जाति की उन्नति का मूल कारण रही है। एकता, सामाजिकता, मैत्री आदि की सहयोगमूलक शक्ति ने आज मानव सभ्यता को उच्चता पर पहुँचा दिया है । पूरा समाज सहयोग और पारस्परिकता के बल पर ही चल रहा है।

यदि समाज से सहयोग की भावना नष्ट हो जाये तो तुरन्त ही चलते हुए कारखाने, होती हुई खेती और बढ़ती हुई योजनाएँ व विकास पाती हुई कलाएँ, शिल्प, साहित्य आदि की प्रगति रुक जाये और कुछ ही समय में समाज जड़ता से अभिभूत होकर नष्ट हो जाये। सहयोग मानव विशेषताओं में एक बड़ी विशेषता है, परिवार में जिसका होना नितान्त आवश्यक है। आचार्य श्री ने आगे कहा कि परिवार की प्रतिष्ठा हमारी प्रतिष्ठा, परिवार की उन्नति हमारी उन्नति, उसकी समृद्धि हमारी समृद्धि और उसकी लाभ हानि हमारी लाभ- हानि है, ऐसी आत्म- भावना पारिवारिकता का विशेष लक्षण है।

हम कोई ऐसा काम न करें, जिससे परिवार की प्रतिष्ठा पर आँच आये। किसी सदस्य पर कोई अवांछनीय प्रभाव पड़े, परिवार की उन्नति में अवरोध उत्पन्न हो अथवा उसकी समृद्धि एवं वृद्धि में प्रतिकूलता आये, ऐसा सतर्क भाव ही तो पारिवारिकता कहा जायेगा। जहाँ यह सब बातें पाई जायें, वहाँ समझना चाहिए कि लोग वास्तविक रूप में परिवार बनकर रह रहे हैं। जहाँ स्वार्थ, वैमनस्य, भाव- वैषम्य, अथवा सुख – दुःख में विषमता की गन्ध पाई जाये, वहाँ मानना होगा कि एक साथ अनेक के रहने पर भी वहाँ परिवार भावना नहीं है।

पारिवारिक भावना के अभाव में ही भाई- भाई लड़ते, बहिनें एक दूसरे से मन- मुटाव मानती, सास- बहू के बीच बनती नहीं और देवरानी जेठानी एक दूसरे से दाह व ईर्ष्या करती हैं। जितने मुकदमे दूसरों से विवाद के नहीं चलते, उससे कई गुना मुकदमे पारिवारिक कलह के कारण दायर होते और चलते रहते हैं। चाचा- ताऊ, बाप- बेटों और बाबा – पोतों तक में संघर्ष होता रहता है। इस अनिष्ट का एकमात्र कारण यही है कि एक परिवार होते हुए भी वे सब पारिवारिक भावना से रहित हैं।

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