विद्यार्थियों को सुविधा छोड़ विद्यार्जन करने की दी प्रेरणा
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी कर्नाटकवासियों का कल्याण करने के लिए कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में चातुर्मासिक प्रवास कर रहे हैं।
कुम्बलगोडु में स्थित आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ सेवा केन्द्र परिसर में बने भव्य ‘महाश्रमण समवसरण’ से नित्य ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है, जिसमें डुबकी लगाने के लिए प्रतिदिन श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। बुधवार से आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थ ‘सम्बोधि’ से मंगल प्रवचनमाला प्रारम्भ की।
गुरुवार को आचार्यश्री ने अपने ‘सम्बोधि’ पर आधारित व्याख्यानमाला को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब भगवान महावीर राजगृह की ओर पधार रहे थे तो सम्बोधि प्राप्त थे।
तीन प्रकार की बोधि बताई गई है-ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि। इन तीनों का सम्यक् समावेश सम्बोधि होती है। भगवान महावीर संबोधि को प्राप्त कर चुके थे। वे मोक्ष की दिशा में वर्धमान थे। वे अहिंसा यात्रा कर रहे थे। वे अहिंसा धर्म का पालन करते हुए आगे बढ़ रहे थे। साधु में अहिंसा होनी चाहिए। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। उच्च कोटि की अहिंसा का पालन करने के लिए आदमी को सहन भी करना होता है।
भगवान महावीर ने इस यात्रा में परिषहों को सहन करते हुए आगे बढ़ रहे थे। गर्मी, सर्दी आदि को साधु को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। मच्छरों ने दंश लगाया तो भी सहन करना चाहिए। गृहस्थ भी अपने जीवन में सहन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर कठिनाईयों को झेलने की क्षमता होनी चाहिए। कठिनाईयों में घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसके समाधान का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ‘सहन करो, सफल बनो’ मंत्र प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपनी जिन्दगी में सहनशील बनने का प्रयास करना चाहिए। सहन करने वाला अपने जीवन में सफलता को प्राप्त कर सकता है। आदमी को कठिनाईयों का भी स्वागत करना सीखना चाहिए।
आचार्यश्री ने समुपस्थित युवाओं को भी पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि विद्यार्थी को भी सहनशील बनने का प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थी को विद्यार्जन के लिए सुविधा का त्याग करना होता है और जो सुविधावादी हो, उसे भला विद्या की प्राप्ति कैसे हो सकती है। सहन करने की वृत्ति आदमी को जीवन में आगे बढ़ा सकता है। भगवान महावीर परम सहिष्णु थे। इसलिए उन्हें वीर भी कहा जाता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन में पधारने से पूर्व देश भर से आए किशोरों का समूह आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुआ। आज से आरम्भ होने वाले 14वें किशोर मण्डल अधिवेशन से पूर्व अभातेयुप के पदाधिकारियों को व किशोरों को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के मंगल आशीष प्राप्त कर किशोर आह्लादित नजर आ रहे थे।
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*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा