चेन्नई. कूक्स रोड स्थित एसपीआर सीटी के टाउनहॉल में रविवार को तीसरे जागरण शिविर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य विमलसागर सूरी ने कहा सद्भाव और समभाव में मौलिक अंतर है।
धर्म के संदर्भ में सर्वधर्म सद्भाव हो सकता है लेकिन सर्वधर्म समभाव नहीं हो सकता। सद्भावना हर मनुष्य के प्रति होनी चाहिए लेकिन सभी के प्रति धार्मिक समभावना नहीं हो सकती।
जैनाचार्य ने कहा जो मनुष्य को सात्विक, अहिंसक, शुद्ध और निष्पाप बनने की प्रेरणा दे, ऐसा धर्मतत्व ही श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा जो सर्वगुण संपन्न और राग-द्वेष से मुक्त हो वही भगवान हो सकते हैं।
जो अवगुण या राग-द्वेष से युक्त हो, ऐसे भगवान हमें दुर्गुणों से मुक्त और राग-द्वेष रहित नहीं बना सकते। शुद्ध आत्मतत्व ही भगवान का स्वरूप हो सकता है। आचार्य वर्धमानसागर सूरी के मंगलाचरण से शिविर की शुरुआत हुई।