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ज्ञान वाणी

सर्वज्ञों की अनुपस्थिति में होता है ग्रंथों का बड़ा महत्त्व: महाश्रमण

सर्वज्ञों की अनुपस्थिति में होता है ग्रंथों का बड़ा महत्त्व: महाश्रमण
दक्षिण भारत के प्रथम चतुर्मास चेन्नई महानगर के माधावरम में सुसम्पन्न कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण के श्रीमुख से निरंतर ज्ञानगंगा की अवरिल धारा प्रवाहित हो रही है। जो केवल चेन्नईवासियों को ही नहीं, अपितु पूरे मानव समाज को एक नई दिशा दिखा रही है।
तभी तो इस ज्ञानगंगा में गोते लगाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों-हजारों श्रद्धालु नियमित रूप से पहुंच रहे हैं। आने वाले श्रद्धालु महातपस्वी संत के दर्शन के साथ-साथ मंगल प्रवचन रूपी ज्ञानगंगा में डुबकी लगाकर मानों निहाल हो जाते हैं। चेन्नईवासियों का तो मानों सौभाग्य ही जागृत हो गया है। जहां कहीं उन्हें अपने कार्यों से जैसे ही अवकाश मिलता है, आध्यात्मिक लाभ लेने के लिए अपने आराध्य के सान्निध्य में कभी सपरिवार तो कभी अपने सहयोगियों के साथ तो कभी अकेले ही उपस्थित हो जाते हैं।
प्रातः दोपहर और सायं नियमित होने वाले चरणस्पर्श में श्रद्धालुओं की इतनी लंबी लाइन लगती है कि कभी-कभी तो चरणस्पर्श का समय बीत जाता है और श्रद्धालुओं की लाइन ही नहीं समाप्त होती है। ऐसे चरणस्पर्श से एक टाइम में वंचित श्रद्धालु पुनः दूसरे टाइम में समय से बहुत पूर्व ही लाइन में आकर लग जाता है और ऐसे महान संत के चरणस्पर्श का सुअवसर जरूर प्राप्त है।
वहीं आचार्यश्री भी नियमित रूप से प्रातः के समय स्वयं अपने श्रीमुख से ज्ञान की गंगा बहाते हैं और अतिशय श्रम को साधते हुए निरंतर श्रद्धालुओं को दर्शन, सेवा और उपासना के साथ-साथ ही अपने श्रीमुख से मंगलपाठ श्रवण का भी लाभ प्रदान करते रहते हैं। ऐसे कृपालु आराध्य को पाकर मानों सभी निहाल हैं।
नित्य की भांति ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित सैंकड़ों-सैंकड़ों श्रद्धालुओं को ‘ठाणं’ आगमाधारित अपने पावन प्रवचन में कहा कि ज्ञान अपने आप में पवित्र होता है। भूगोल, खगोल, गणित, भौतिक, रसायनिक आदि-आदि अनेक ज्ञान होते हैं। अध्यात्म को जानना भी ज्ञान होता है। सरल शब्दों में कहें तो ज्ञान अनंत है।
पूर्व में जब सर्वज्ञ हुआ करते थे तो ग्रंथों का कोई महत्त्व नहीं था। कितने-कितने ज्ञान उन्हें कंठस्थ रहते थे। सर्वज्ञों की अनुपस्थिति में इन ग्रंथों का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है। ग्यारह आगमों में जितना ज्ञान समाहित वह भी मानों अधूरा है। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद ज्ञान को एकत्रित करने और उसे लिपिबद्ध करने का प्रयास किया गया।
इस क्रम में करीब 500 साधु भद्रबाहु स्वामी से 14 पूर्वों का ज्ञान लेने के लिए गए थे, किन्तु ज्ञान की विकटता और वर्षों लगने वाले समय से श्रद्धालु ऊबते गए और वह ज्ञान छोड़ लौट आए। एकमात्र स्थूलीभद्र ने दस पूर्वों का ज्ञानार्जन किया और बाद में उन्होंने ज्ञान का गलत प्रयोग कर लिया था, जिसके कारण उन्हें आगे के शेष ज्ञान से वंचित रहना पड़ा। आचार्यश्री ने लोगों को निरंतर ज्ञानाराधना करने की पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान कहीं से भी प्राप्त हो उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।
आगमाधारित पावन प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने ‘मुनिपत के व्याख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। इसके उपरान्त प्रेक्षाध्यान फाउण्डेशन समापन अवसर उपस्थित संभागियों को आचार्यश्री से पावन आशीष भी प्राप्त हुआ। वहीं मुख्य प्रशिक्षक श्री राजेन्द्र मोदी ने अधिवेशन की विस्तृत रिपोर्ट आचार्यश्री के समक्ष सौंपी और पावन आशीष प्राप्त किया।
स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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