चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा के सानिध्य में साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशु ने उत्तराध्ययन सूत्र के मूल पाठ का वाचन किया और छब्बीसवें अध्ययन की विवेचना में कहा कि प्रभु ने संघ और समाज में शांति, सुव्यवस्था और आनन्दमय वातावरण बना रहे और साधक अपनी साधना करते हुए लक्ष्य प्राप्त कर सके इसके लिए दस प्रकार की समाचारी बताई गई।
स्वाध्याय, साधना, गोचरी, निद्रा, दिवस व रात्रि आदि-आदि समाचारी बताई है। सत्ताईसवें अध्ययन में प्रभु ने साधक को आहार ग्रहण करने के छह कारण बताए हैं। संयम निर्वाह, सेवा, जीवदया पालन, धर्म चिंतन करने के लिए आहार लेना चाहिए।
इसी प्रकार छह कारण से आहार छोडऩा बताया है। असाध्य रोग आदि आतंक होने, कोई उपसर्ग-परिसह उत्पन्न होने पर, ब्रह्मचर्य गुप्ति या संयम की रक्षा के लिए, जीवों की रक्षा के लिए, तपस्या की भावना से संचित कर्म क्षय करने के लिए और शरीर को निर्बल-दुर्बल पाकर अधिक समय नहीं टिकने वाला है यह सोचकर आहार आदि त्यागकर संथारा ग्रहण करने की बात कही है।
सत्ताईसवें अध्ययन में तीर्थंकर प्रभु ने चार तरह के बैलों से चार तरह के शिष्य बताए हैं। पहले जो गुरु के इंगित मात्र से कार्य संपादित करते हैं, दूसरे शिष्य इंगित को नहीं समझते पर गुरुआज्ञा सुन कार्य संपन्न करते हैं, तीसरे गुरु के बार-बार कहने के बाद कार्य करता है, चौथी तरह के दुष्ट बैल की तरह दुष्ट और आज्ञा ठुकराने वाले शिष्यों के बारे में बताया गया है। गुरु वर्गाचार्य अपनी धर्मसाधना में बाधक बनने वाले दुष्ट बैलों जैसे अवहेलना करने वाले अनुशासनहीन शिष्यों को छोड़कर एकांतवासी बनते हैं।
अठाईसवां अध्ययन मोक्षमार्ग की गति को निरूपण करने वाला बताया है। प्रभु ने उसके चार मार्ग बताए हैं- सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र और सम्यक तप। अनादीकाल से कर्म और आत्मा का संबंध है- तिल में तेल, गन्ने में रस, दही में मक्खन की भांति आत्मा से कर्म लिप्त है। आत्मा के स्वरूप का दर्शन करने के लिए जैसे कलाकार घानी से तिल में से तेल और दही से मक्खन निकालता है वैसे ही सम्यक आराधना द्वारा आत्मा को कर्मों से मुक्त किया जा सकता है।
मोक्ष के चार मार्ग का गहराई से चिंतन किया गया है। पांच प्रकार के ज्ञान, छह प्रकार के द्रव्य बताए हैं। नौ तत्वों की चर्चा की है। जो जीव अजीव की आसक्ति नहीं करे और मुख मोड़ ले तो मोक्ष उसके नजदीक है। वस्तु, शरीर, संपत्ति, धन, दौलत की आसक्ति ही संसार परिभ्रमण का कारण और मोक्ष में बाधक है। इनसे जरा-सा पलट लें तो मोक्ष जीव के नजदीक होते हैं।
आत्मा रूपी मकान में कर्मों का कचरा जमा है, सम्यकत्व का दीपक जलने से ज्ञान का प्रकाश होने से आप जानेंगे कि यहां पर कूड़ा फैला है। जानने पर चारित्र से उसे साफ किया जाता है, तप सेा चिपके हुए छोटे-छोटे संचित कर्मों का क्षय कर आत्मा के सही स्वरूप में लेकर आते हैं।
सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से मोक्ष मंजिल पा सकते हैं। प्रभु ने कहा है श्रावक सबसे पहले ज्ञान प्राप्त करे, नौ तत्वों का ज्ञाता बनें। जीव अजीव जानकर आसक्ति छोड़ें, पुण्य-पाप जानकार उस पर श्रद्धा करें।
सम्यकदर्शन को परिपुष्ट करना है तो यह अध्ययन बहुत लाभकारी है। सम्यकत्व को परिपोषित करने में सहायक दस प्रकार की रूचि बताई है। जिनेश्वर भगवान ने जो आज्ञा दी है, राग द्वेष अज्ञान मोह का छेदन किया है ऐसे वीतरागी महापुरुषों की आज्ञा जानकर उस श्रद्धा करना है। सम्यकदर्शन प्राप्त करने के लिए वीतराग के वचनों में शंका नहीं होनी चाहिए।
जब तक सम्यक श्रद्धा उत्पन्न नहीं होगी तो सम्यक ज्ञान उत्पन्न नहीं होगा, सम्यकज्ञान बिना सम्यक चारित्र पालन नहीं होगा। सम्यक चारित्र बिना मोक्ष नहीं और निर्वाण नहीं। सम्यक श्रद्धा मोक्ष मंजिल की पहली सीढ़ी और पहला सोपान है। ये चार मार्ग अलग नहीं, एक से एक जुड़े हैं। मोक्ष की ओर ले जानेवाले हैं। मंजिल के साथ-साथ मार्ग भी जाननें तो मंजिल पर अवश्य पहुंचेंगे।
धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने विभिन्न तप के पच्चखान लिए। २५ से २७ अक्टूबर को सामूहिक तेला आराधना होगी। २८ अक्टूबर को प्रात: ६.१५ बजे से उत्तराध्ययन का अंतिम अध्याय का वाचन और नववर्ष मंगलपाठ होगा।