चेन्नई. दिंडीवनम में विराजित जयतिलक मुनि ने कहा कि किसी भी काम को करने के लिए ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान के बिना काम नहीं हो सकता। ज्ञान की प्राप्ति दर्शन से होती है। देखने को ही आगम कारों ने दर्शन कह दिया। दर्शन भी सम्यक हो तो ज्ञान भी सम्यक होगा। देख देख कर हम सभी काम सीख सकते हैं।
विवेक कहता है कि कोई काम करो तो एक्स्ट्रा करो। नाम होता है, प्रसन्नता आती है, प्रशंसा होती है, उसका महत्व होता है। ऐसा धर्म भी एक्स्ट्रा करना। धर्म ध्यान दुख से मुक्ति के लिए करते है। कर्मो की निर्जरा होती है।
इधर दुख लोगे तो आगे सुख पाओगे। पहले खुद की आत्मा पर दया पा लोगे तो सभी जीवों पर दया अपने आप पल जाएगी। हम दूसरे जीवों पर दया पालते हैं अपने ऊपर छोड़ देते हैं। इसलिए जिनेश्वर ने अभयदान बताया है।
स्थानक में प्रवेश करने की भी विधि है। सामयिक करने की भी विधि है। विधि से करोगे तो लाभ मिलेगा। स्थानक में प्रवेश करने के लिए पांच अभिगम बताए हैं।
संतान को जन्म देना सरल है उसे पालना और सेवा करने योग्य बनाना कठिन है। छोटे में ही उसको मेहनत करके उसे संस्कार देंगे तो पुण्यवाणी से बड़ा होकर हमारी सेवा करेगा।