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सम्यक दर्शन है तो निर्वाण निश्चित है: दर्शन मुनि जी म.सा

सम्यक दर्शन है तो निर्वाण निश्चित है: दर्शन मुनि जी म.सा

सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद

पुज्य की दर्शन मुनि जी म.सा,–ठाणांग सूत्र में 4 प्रकार के जीव बताये है

1 पेट भी भरता है पेटी भी भरता है ..संसारी जीव

2) पेट भरता है पेटी नहीं भरता है….साधु संत

3) -पेट नही भरता पेटी भरता है …मम्मन सेठ

४) पेट भी नहीं भरता वह पेटी भी नहीं भरता है.. सिद्ध भगवन

 पुण्यवानी से लक्ष्मी मिली, जिसकी जितनी पुण्यवानी होगी उतनी दुकान चलेगी। पुण्यवाणी का खेल है। पुण्य से मिले धन का दुरुपयोग मत कर ।।

*पुज्य प्रवर्त‌क की प्रकाश मुनि जी मासा*-→ यो मुक्त पंथम…. विद्वद्वर्या डॉ. श्री ललित प्रभाजी म.सा. गुरुदेव के लिये कहते है…

 *यो मुक्ति – पन्थ – गमने करुणार्द्र सार्थम् ।*

*संसार मार्ग विमुखम् प्रविमुक्त स्वार्थम् ।* *आनन्द रूप मखिलम् परिपूर्ण सत्त्वम् ।* *सौभाग्य सद्गुरुवरं शिवदं स्मरामि ॥३॥*

 श्री सोभग्यमल जी महारासा मुक्ति पंथ पर गमन करने वाले थे, मुक्ति का कहाँ से प्रारंभ होता है करुणा से! जहां करुणा सार्थक हुई करुणा शील हृदय से,,, करुणा जगाओ तो सम्यक दर्शन का स्पर्श होगा , सम्यक दर्शन है तो निर्वाण निश्चित है

*एक क्षण का सम्यक दर्शन केवल ज्ञान दिला सकता है* एक बार सम्यक स्पर्श कर ले तो मुक्ति निश्चीत है भवी जीव को उजाला मिलता है, उजाला क्षणिक होता है।

इसका मूल स्त्रोत *करुणा*- करुणा से हृदय में भाव पैदा होता है इसमें अनुकंपा भाव भी आ जाते है अनुकंपा – भाव भी आ जाते है । आस्था, अनुकम्पा,निर्वेद संवेग- सम यह क्रम उल्टा चलता है।

आस्था जो भगवान कहै वहीं सही, *माधविया* – कोमलता- मुनि कोमलता का उपदेश देवे जो आया उसको। भवि अभवि दोनो आते है। अभवी परमात्मा के हाथ से दीक्षा नहीं ले सकता ,,साधु से ले सकता है, अभवी के लिये उपदेश क्यो ?

उत्थीत हे उसको भी उपदेश करते हे, अनुथित को भी उपदेश देना। अभवी दुखो से बचे नरक व निगोध के दुःखो से बचे। परमात्मा की करुणा.. उसे भी बचाना चाहते है, *अनार्य* कर्म न करे.. करुणा का भाव। भवी मतलब मित्र लोग,, अभवी में अमित्र लोग.. मुनि उपदेश में भेद न करें। परमात्मा भवी व अभवि के लिये भेद नहीं करते।

भगवान उत्तम श्रेणी के पुरूष होते है उन पर किसी शस्त्र का प्रहार नहीं होता है। परमात्मा की शीत लेश्या के सामने तेज्यो लेश्या कहाँ लगे। गौशालक तेज्यो लेश्या से हीन हो गया! तेरे 7 दिन बचे जाग जा… इतना सुनने को मिला जब वह साथ में थे तब वह सामान्य अवस्था में थे। *जिसका मोक्ष निश्चित होगा ..जो परमात्मा के समाने आते है।*

चौथी नरक से निकली आत्मा केवली बनती है, तीसरी नरक से निकली आत्मा तिर्थकर बनती है हमने उनको देखा नहीं। *परमात्मा के एक बार*

*भव परम्परा में दर्शन हो जाय*

१ त्रिगढ़ की रचना देव करते है अनार्य देश में ज्यादा होती है दुसरो को आकर्षित के लिये भवी जीव को आकर्षित करने के लिये करते है। जिसकी धारणायें गलत वह गधे – मियादृष्टि जीव

जिसकी धारणाये सही वह घोडा.

25 प्रकार के मित्यात्व बताये, *अभिनिवेषिक मिथ्यात्व* गलत को पकड़ के बैठ गया ..छोड़ने को तैयार नहीं अपना हटागृह छोडते नहीं लाख समझाओ छोड़ता नहीं।

एक बार का समय्यक दर्शन.. पार कर देता है, तीर्थंकर का हदय कंपीत होता है करुणा से भर जाता है …कि जीव ने ऐसा कर्म क्यों बांधा। ( *1सांस ले उतने में 17 बार जन्म मरण हो जाता है।* वहाँ मोज शोक का समय मिला नही अब यहां कर ले ….तुम्हारा धन, खाने, पीने, घूमने में पुरा, होता है पूण्यशाली आत्मा धर्म में खर्च करती है। देखो जो पुण्याई सही रास्ते से फलती है वह सुखी,,,

 परमात्मा निगोध के जीव को देखकर करुणा से भर जाते है। निस्वार्थ भाव से करुणा जागती है। उपदेश देकर अपना भला किया.. मुनि अभेद भाव से उपदेश करे आने वाले को पात्रता

के अनुसार उपदेश करे ! मुनि *माधविये*- कोमलता- करुणा का उपदेश करे

करुणा जाग गई तो तुम्हारा उद्धार ! किसी को दुःखी देखकर करुणा.. तो जगाये।-यह भाव पैदा होगा। जो पैदा करेगा वह करुणा वाला!

*जे मम्माइं अरिह मम्माई चेयई*

जो ममत्व बुद्धि को समझता है वह ममता का त्याग करेगा। हम मोह से बंधे है ? दुःखी कोन करेगा ? *ममता* जिससे.. उससे दुःख ज्यादा, दुःख कहाँ से आया? जहाँ ममता है वहीं तक करुणा है। कमाने वाले भुखे! मजे तो बच्चे उड़ा रहे है.. किसके दम पर ..बाप के दम पर ! तुमने धन को शास्वत समझ रखा। धर्म को शास्वत नहीं मानते है। भाग्य में होगा तो मिल जायगा। तुमको अपने भाग्य पर भरोसा नहीं! भगवान की वाणी पर विश्वास नहीं!

तुम्हारी ममता! मेरा हे? कितनी ममता! सारी जिन्दगी लगा दी खुद के लिये कुछ नहीं… कमाने वाला कंजुसी में जीता है.. कुछ नहीं कमाने वाला शाही जिंदगी जीता है। हर जीव अपना कर्म लेकर आता है भोगता ” है। स्वयं का भाग्य काम करेगा। विश्वास आस्था कहाँ! आस्था के अनेक रूप…

-भगवान की वाणी पर आस्था वह भवी जीव,, वह ममता मैं नहीं उलझता है, मेने कर्तव्य पूरा कौन किसी को बचाने वाला नहीं। किसके लिये कर रहे हो? खाने वाला भोगने वाला नहीं। जानते हो? मानते हो? समझते नही

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