बेंगलूरु। यहां गणेश बाग में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवरश्री प्रवीणऋषिजी म. सा. ने प्रवचंन के माध्यम से सम्यक दर्शन की यात्रा में वंदना का महत्व बताते हुए कहा कि वंदना करने की क्रिया के कारण से जीव के नीच गौत्र का क्षय हो जाता है और वह उच्च गौत्र का बंध करता है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर का संदेश है कि जो दूसरो की निंदा और अपनी प्रशंसा करे वो नीच गौत्र है और जो स्वयं की कमियाॅं और दूसरों की अच्छाई देखे वह उच्च गौत्र वाला व्यक्ति होता है।यदि व्यक्ति उच्च गौत्र वाला हो जाये तो सारी पुण्यवानी अपने आप दौडी चली आती है।
उपाध्यायश्री ने कहा कि मनुष्य के जीवन में दो चक्र होते है। धर्म चक्र और संसार चक्र। संसार चक्र की गति उल्टी है तो वहीं धर्म चक्र की गति सीधी है। इसलिए संसार में समाधान प्राप्त करने के बावजूद भी समस्या दूर नहीं होती है एवं धर्म के क्षेत्र में कितने भी समस्याएॅं आ जाए समाधान प्राप्त हो ही जाता है।संसार कर्म है इससे समस्या है और धर्म से समाधान है। आचारांग सूत्र का ये शाश्वत उद्घोष होता है कर्म से उपाधि का जन्म होता है। कर्म का अर्थ राग और द्वेष और धर्म का अर्थ श्रद्धा और संयम है। राग द्वेष कर्म के बीज है। जहां श्रद्धा और संयम के आधार पर समाधान दिया जाता है वहां सम्यक दर्शन होता है और यदि व्यक्ति के जीवन में ये आ जाए तो रेगिस्तान भी नंदन वन में बदलने में देर नहीं लगती है।चातुर्मास महिला समिति की चैयरमैन रसीला मरलेचा ने बताया कि समिति के पदाधिकारियों ने तपस्वियों का बहुमान किया। श्रीमति किरणबाई मुथा, हुकमीचंद कांकरिया, श्रीमती बबीता बाई ने 28 उपवास के पचखाण लिए एवं श्रीमती कंचन सोलंकी ने 21 उपवास के पचखाण लिए।रसीला मरलेचा ने बताया कि नवकार कलश कार्यक्रम प्रातः 8 बजे से 9 बजे तक एवं अष्टमंगल ध्यान शिविर 11 बजे से 2 बजे तक है।