किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा सम्यक ज्ञान से ज्यादा महत्व सम्यक दर्शन का है। सम्यक दर्शन को दृढ बनाने के लिए सम्यक ज्ञान चाहिए। ज्ञान को दीपक, सूर्य, चक्षु व धन की चार उपमाएं दी गई है। उन्होंने कहा ज्ञान हमारे अन्दर पड़ा है, इसे हृदय में प्रकट करने की जरुरत है।
यह हमेशा प्रकाश देने वाला है इसलिए सूर्य की उपमा दी गई है। ज्ञान चक्षु रुपी इसलिए है क्योंकि स्थूल यानी बड़ी चीजें हमें दिख जाएगी लेकिन सूक्ष्म पदार्थ को देखने के लिए तीसरे नेत्र की जरूरत है। धन वह है जो हमेशा आपके साथ रहे और आपकी रक्षा करे।
आप जिस धन की बात करते हैं वह आपके साथ रहने वाला नहीं है और उसके कारण आपकी विपत्ति बढती है। ज्ञान रुपी धन परभव में भी आपके साथ चलने वाला है। इसे कोई चुरा या लूट नहीं सकता। ज्ञान धन की कोई चोरी कर सके किसी की ताकत नहीं।
विद्वान सर्वत्र पूज्यते: यानी ज्ञानियों का हर जगह आदर व सम्मान होता है। आज हमारा दुर्भाग्य है कि जितनी लगन संसार के धन की है उतनी ही ज्ञान धन की नहीं है।
वैसे तो जगत में ज्ञान का बोलबाला है, युवक डिग्रियों के पीछे भाग रहे हैं लेकिन वास्तव में वे भटक भी रहे हैं। ज्ञान की आराधना तभी फलीभूत होगी जब ज्ञान के प्रति आपकी रुचि व जिज्ञासा बढेगी। आज क्रिया व तप की रुचि है लेकिन ज्ञान की रुचि बहुत पीछे है। जीवन में ज्ञान होगा तो उपशम भाव, विवेक, संवर आदि की प्राप्ति होगी।
कर्मों का क्षय करने के लिए ज्ञान की अति आवश्यकता है। जो ज्ञान आपत्ति में आत्मा की रक्षा करे, आत्मा के परलोक को सुधारे, जीवन में विवेक को प्रकट करे वह सच्चा ज्ञान है। हमें दृष्टिवाद के अभ्यास से अन्तर्ज्ञान को खोजना है। उससे हमारे ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे जो मृत्यु के समय समाधि प्रदान करेगा, आपत्ति में आर्तध्यान व दुर्ध्यान से बचाएगा। यही दृष्टिवाद का अभ्यास परलोक को सुधार लेगा।
उन्होंने कहा ज्ञान दुनिया को खुश करने के लिए नहीं अपितु आत्मकल्याण करने के लिए है। बच्चों को भी कम से कम दो प्रतिक्रमण, जीवविचार, नवतत्व ज्ञान का संस्कार देना हर माता पिता का फर्ज बनता है।
बच्चों को संस्कारी, सदाचारी व सत्वशाली बनाना है तभी उनके जीवन में सम्यक ज्ञान प्रकट होगा। आज की शिक्षा को काटने की ताकत किसी में नहीं है लेकिन थोड़ा धार्मिक ज्ञान गुरु से मिलना जरूरी है। इससे उनके जीवन में भय व खतरा नहीं रहेगा। सम्यक ज्ञान वह है जो विकृति को दूर करे, संस्कृति को दृढ बनाए व जो प्रकृति की रक्षा करे।
उन्होंने कहा ज्ञान के तीन स्तर हैं किताबी ज्ञान, दिमागी ज्ञान व आचरण का ज्ञान। आज किताबी ज्ञान का बोलबाला है। महापुरुषों ने वास्तविक ज्ञान उसे बताया है जिससे आत्मा का बोध हो, आत्मा के स्वरूप का बोध हो और आत्मस्वभाव की अनुभूति कराए।
आत्मा के शुद्ध स्वरूप की पहचान कराए वह सम्यक ज्ञान है। प्रतिदिन आधा घण्टा ज्ञानार्जन के लिए पुरुषार्थ करेंगे, इसका संकल्प करो। उन्होंने कहा धनवान के साथ ज्ञानवान बनो।
आचार्य व अन्य साधुओं का चातुर्मास परिवर्तन का पहला विहार 12 नवम्बर को होगा। वे भरत सिंघवी, महालक्ष्मी ज्वैलरी के कैलिस रोड़ स्थित आवास पर जाएंगे।