किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी महाराज ने ज्ञान पद की विवेचना करते हुए कहा कि कालचक्र, कर्मचक्र और कषायचक्र के कारण आत्मा संसार में भ्रमण कर रही है। नवकार के नवपद में अनंत शक्ति रही हुई है। ज्ञान को दीपक की उपमा दी गई है। जीवन को प्रकाशमय बनाना है तो ज्ञान का होना परम आवश्यक है। ज्ञान जीवन का मूलमंत्र है। सम्यक् ज्ञान के बिना हमारा जीवन अधूरा है। सम्यकदर्शन की प्राप्ति सम्यकज्ञान के लिए आवश्यक है।
सम्यकज्ञान सम्यकदर्शन को निर्मल और उज्जवल करता है और चारित्र के शुभ परिणामों को उत्पन्न करता है। ज्ञान तीन बताए गए हैं इंद्रियों के द्वारा होता हुआ ज्ञान, मन के द्वारा होता हुआ ज्ञान और आत्मा के द्वारा होता हुआ ज्ञान। चार प्रकार के ज्ञान आत्मा के पास हो सकते हैं संवेदन ज्ञान, विषय प्रतिभास ज्ञान, व्यवहार ज्ञान और तत्व परिणति ज्ञान। ज्ञानी कहते हैं अपने अंदर रहे मोह की प्रतिक्रिया अटकानी है तो सम्यकज्ञान का उपयोग शुरू कर दो। एक बार किया हुआ पाप कई गुना बढ़कर आता है। उन्होंने कहा अभिमान दूर करना है तो उपाध्याय और आचार्य पद की साधना करनी चाहिए। माया को दूर करना है तो आचार्य पद की साधना करनी चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि निकाचित कर्म तोड़ने के लिए ध्यानयोग श्रेष्ठ है। ध्यानयोग करने के लिए देह की ममता छोड़नी पड़ेगी। यदि सम्यक् ज्ञान हो तो निकाचित कर्मों के क्रम को अंतर्मुहूर्त में तोड़ा जा सकता है। सम्यक् ज्ञान पाने के लिए ज्ञान का सातत्य रखना, गुरु का सानिध्य रखना, सम्यक् विनय और ज्ञान वाले की संगति रखना जरूरी है। सम्यक् ज्ञान की पात्रता परखने का सरल उपाय है दाक्षिण्यता। ज्ञान है, और ज्ञान का उपयोग नहीं करेंगे, तो नहीं चलेगा। अभिमान और निष्क्रियता ज्ञानी को भी दुर्गति में ले जाती है।
ज्ञान कम है और अभिमान व निष्क्रियता नहीं है, तो वह ज्ञान मोक्ष में भी ले जा सकता है। वर्तमान का अवलोकन करें तो हम पाएंगे कि हमने औरों को बहुत समय दिया लेकिन हमने उससे क्या पाया? हमने स्वयं के लिए, अपनी आत्मा के लिए कितना समय दिया, यह सोचने की बात है। जब सम्यक् ज्ञान का प्रवेश जीवन में होता है तो आधी दुविधाएं, समस्याएं स्वत: ही खत्म हो जाती है। ज्ञानी कहते हैं आत्मा जब जागृत बनती है तब पाप धुलने में ज्यादा समय नहीं लगता। हमें परमात्मा कथित ज्ञान प्राप्ति के उपायों को अपनाना है द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग और कथानुयोग। द्रव्यानुयोग के स्वाध्याय से श्रद्धा दृढ़ बनती है। चरणकरणानुयोग ग्रंथ पढ़ने से चारित्र स्थिर बनता है। जड़ता को दूर करने के लिए गणितानुयोग है और जब व्यक्ति के मन से अस्वस्थ हो तब कथानुयोग उपयोगी बनता है।