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सम्यक्त्व का बीज वपन हुआ महावीर की आत्मा में – साध्वी सुयशा

सम्यक्त्व का बीज वपन हुआ महावीर की आत्मा में – साध्वी सुयशा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज मंगलवार तारीख 11अक्तूबर 2022 परम पूज्य सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में सुयशा श्रीजी मसा के मुखारविंद से अहिंसा के अवतार तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जीवनी की कथा का प्रारंभ बहुत ही सुन्दर एवं रोचक ढंग से हुआ!

ऐसा लग रहा था जैसे सामने कोई चलचित्र चल रहा है! राजा शत्रु वर्धन एक बहुत ही योग्य प्रशासक थे और कला प्रेमी थे! उनकी प्रबल इच्छा थी कि उनके युग में कोई ऐसी शिल्प कला बने, जिनका इतिहास सदियों तक बना रहे! दरबारियों से पूछा गया, बहुत से मूर्ति कलाकारों से पूछा गया और अंत में सभी की एकमत राय से नयसार नामक शिल्पी को दरबार में बुलाया गया और राजा ने अपनी मंशा जाहिर की! यद्यपि सभी शिल्प कलाकारों ने नयसार नाम का सुझाव दिया था, इसका यह मतलब नहीं था कि कोई भी दूसरा योग्य शिल्पकार उस राज्य में नहीं था!

महाराजा ने बताया मेरे सपने को पूरा करने के लिए, राज्य में सभी शिल्पकारों से परामर्श किया और सभी ने आपका ही नाम बताया इसका मतलब है “आपके जैसा कोई नहीं”! राजा के मुंह से “आपके जैसा कोई नहीं” जैसे शब्दों ने सर्व गुण सम्पन्न नयसार के अहंकार को जागृत कर दिया था, पल भर में उसका नजरिया बदल गया! हमारे जिंदगी में आने वाले शब्द ही हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं और वैसे ही दंभ भरे शब्दों में नयसार ने कहा कि आपने सही कहा, आपने बिल्कुल सही आदमी को चुना है! नयसार ने किसी भी शिल्पी का आभार प्रकट नहीं किया जिनकी वजह से राजा ने उन्हें चुना था!

एक वृद्ध शिल्पी जो दरबार में उपस्थित था उसने नयसार के मानसिक बदलाव को भांप लिया और समझ गया कि अब इसके विनाश काल शुरू हो गए! घर पहुंचते ही खुश मिजाज पति को देखते ही पत्नी शिवा ने कारण पूछा तब नयसार ने बड़े घमंड से बताया कि इस राज्य के सभी शिल्पी कलाकार उनके सामने व्यर्थ है इसलिए राजा ने उन्हें चुना! भविष्य में कोई ग्रहण ना लग जाए इस बात से चिंतित उसकी पत्नी शिवा ने कहा कि आपको सब का सहयोग लेना चाहिए किसी को भी व्यर्थ नहीं कहना चाहिए क्योंकि, उनकी वजह से ही आपको यह सम्मान मिला है!

महाराजा ने बहुत बड़ा काम दिया था! बहुत से शिल्प कलाकारों को काम मिलना था! लेकिन नयसार ने किसी को भी नहीं बुलाया, किसी को भी काम नहीं दिया! छ: महीने तक सभी शिल्प कारों ने इंतजार किया कि कुछ काम मिलेगा! लेकिन जब काम नही मिला तो राजा से अनुरोध किया कि उन्हें एक बार नयसार के काम-काज पर एक नजर डालनी चाहिए! राजा ने दूसरे ही दिन नयसार के यहां आने का संदेश भेज दिया! पत्नी शिवा को मालूम पडते ही उसने अपने पति से विचार विमर्श करते हुए कहा कि आधी अधूरी बनी मूर्तिय राजा को ना बताएं!

लेकिन नयसार नहीं माने और दूसरे दिन कला भवन में राजा को लेकर पहुंचे इतने में रात भर में बाकी सब कलाकारों ने षड्यंत्र के तहत सभी कलाकृतियों को खंडित कर दिया था। उन खंडित कलाकृतियों को देख करके राजा क्रोधित हो गए और नयसार को देश निकाला दे दिया! दुखी नयसार घर पहुंचते ही उसकी पत्नी शिवा अनहोनी घटना को भांप लेती है और देश निकाले में अपने पति के साथ में चल देती हैं!

ना कोई लक्ष्य ना कोई मंजिल अपनी जिंदगी से विरक्त नयसार आत्महत्या करने के लिए एक पहाड़ी पर पहुंच जाते हैं, है यह भी भान नहीं रहता कि उनकी पत्नी उनके साथ है! जैसे ही पत्नी उनका हाथ पकड़ कर उन्हें विश्वास दिलाती है कि वे अकेले नहीं हैं, उनकी पत्नी उनके साथ है तो वे थोडा आश्वस्त हो जाते हैं! तभी थोड़ी दूर पर एक गुजरी के लिए निकले हुए निर्ग्रंथ साधु के दर्शन होते हैं! लेकिन उनके मुख मंडल के तेज और आभा को देख कर नयसार आश्चर्यचकित हो जाते हैं और उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं और पूरे समर्पण के साथ भोजन बेहराते हैं!

मन में पवित्रता आते ही नयसार के मन से मौत के बदले जीने की प्रबल इच्छा जागृत होती है और यही उन्हें समकित की प्राप्ति होती है और वे धैर्य पूर्वक वापस अपनी पत्नी शिवा के साथ नगर की तरफ चल पड़ते हैं! इधर नगर के सभी शिल्प कलाकारों का मन कचोटता है कि उनकी वजह से ही नयसार को देश निकाला दिया गया है, वे सब राजा को समझाते हैं और माफी मांगते हैं!

अपनी भूल को समझकर राजा सहित सभी लोग नयसार को वापस लाने के लिए निकल पडते हैं! आमना सामना होता है और नयसार अपने अहंकार को मानते हैं और सभी से माफी मांगते हैं! सभी कलाकार शिल्पकार मिलकर काम करते हैं और 6 महीने का काम 2 महीना में पूरा कर देते हैं! नयसार हर कदम पर साथ देने वाली अपनी पत्नी शिवा की खुशियों को देखना चाहते हैं और आग्रह पूर्वक उसे ले जाकर अपनी कलाकृतियों को दिखाते हैं!

शिवा शिखर को देखते हुए ऊपर चढ़ती है और खुश होती है और उसके खुशी चेहरे को देखते हुये नयसार खुश होते हैं! तभी उनका पांव फिसल जाता है और वे ऊपर से नीचे गिर जाते हैं और वहीं पर उनका काल धर्म हो जाता है! यहीं से शुरू होती है तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के सम्यक्तव की पहली किरण और परमात्मा बनने का पहला कदम! आज धर्म सभा में भीलवाड़ा संघ के मंत्री एवम पधाधिकारी गण पधारे है और धोबीपेट के संघ भी आया और मरासा के सेकेकाल की विनती की गई।

*क्रमशः*

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