किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने नवपद आराधना के छठे दिन सम्यक दर्शन के पवित्र दिन पर कहा कि सम्यक दर्शन का अर्थ है सच्ची और परिपूर्ण श्रद्धा, सत्य तत्वों में गहरी आस्था, सही दृष्टि इत्यादि। जिनवाणी पर अटूट श्रद्धा होने पर ही जीव सम्यकदर्शन का अनुभव कर सकता है और मिथ्यात्व से सावधान हो सकता है।
ज्ञानी कहते हैं कि सम्यकदर्शन के बिना सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र संभव नहीं हो सकता। सम्यकदर्शन का अवतरण आत्मोन्नति की प्रथम सीढ़ी है। सम्यकदर्शन पद में चार श्रद्धा, दस विनय, पांच लक्षण सहित 67 गुण होते हैं, जो मोक्षमार्ग के आलंबन है। मोक्ष पद की प्राप्ति हेतु सम्यक्त्व होना ही चाहिए। सम्यक्त्व के चार लक्षण अनुकंपा, आस्तिकता, समता और संवेग बताए गए हैं। उन्होंने कहा शासन की स्थापना अरिहंत करते हैं।
सिद्ध भगवंत हमारे लक्ष्य है, तो अरिहंत हमारे मार्ग है। गुणों में सबसे पहले सम्यकदर्शन की आराधना होती है, सम्यकज्ञान की नहीं। ज्ञान न हो, श्रद्धा हो तो भी केवलज्ञान पा सकते हैं। ज्ञानी कहते हैं श्रद्धावान व्यक्ति अपने विचारों को प्राथमिकता नहीं देता बल्कि परमात्मा के विचारों को प्राथमिकता देता है। स्वयं के विचारों को प्राथमिकता देगा तो श्रद्धा कम होती जाएगी। अनादिकाल से हमें गलत अभ्यास की आदत पड़ी हुई है। उन्होंने कहा जिस चीज को हम छोड़ते हैं, वह वापस आती है। भोगकाल में भी परमात्मा के सिद्धांत भूलना नहीं चाहिए। हम स्वार्थ के कारण जीवों की विराधना करते हैं।
हमें जीवन के हर क्षेत्र में जयणा का पालन अवश्य करना चाहिए। अनित्य भावना को केवल भाना नहीं, जीवन में अपनाना चाहिए। ज्ञान पाना बड़ी बात नहीं है, ज्ञान का उपयोग सही ढंग से करना महत्वपूर्ण है। अभिमान और स्वाभिमान में यह अंतर है कि अभिमान जरूरत नहीं पड़ने पर शक्ति बताना होता है और स्वाभिमान जरूरत पड़ने पर शक्ति बताना होता है। जहां सम्यक दर्शन होगा और जो भी ज्ञान आएगा, वह सम्यक बन जाएगा। अल्पज्ञान भी मोक्ष का कारण बनता है। सम्यकदर्शन जितना बढ़ेगा, सम्यक चारित्र उतना ही बढ़ता है। मैं परमात्मा के हरेक लोग को बहुमान भाव से देखूंगा, ऐसी भावना सम्यकदर्शन लाती है। अहोभाव सम्यकदर्शन का सर्वश्रेष्ठ बीज है।