चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि आप जैसा बनना चाहते है वैसा रहिए , वैसा सोचिए और वैसा ही आचरण कीजिए। सम्यक दृष्टि होना चाहते है तो अंतरमुखी होने का प्रयास कीजिए। सभी इंद्रियों के द्वार बाहर की ओर खुलते हैं इसलिए मन बाहर की ओर भाग रहा है।
जिनकी खिड़कियां रहती है वे बाहर की ओर देखते रहते हैं। आपका आसपास की बातों पर ध्यान रहता है। आप जिस तरह महसूस करते है उसी तरह की आपकी क्वालिटी है। वही आपकी चाहत है। मुझे खुश रहना है तो मेरा परिवार मेरे अनुकूल रहना चाहिए। मकान ऐसा चाहिए, पत्नी ऐसी होनी चाहिए।
आप अपने को गिरवी रख रहे हो। वस्तुओं का इच्छाओं का गुलाम बना रहे हो। कर्म सत्ता आपको खरीद रही है। आप पदार्थजन्य सुख को, पदार्थजन्य शांति को अपना लक्ष्य बनाए हुए है। आपका रस पदार्थों में है।
परमात्मा में नहीं पर में है। पॉजीटिव बनिए। शरीर के सामान और सम्मान का ध्यान रखते हैं खुद का नहीं। जिस दिन खुद का, आत्मा का ध्यान रखेंगे उस क्षण सम्यकत्व का बीजारोपण हो जाएगा। आपका ध्यान बाहर की ओर है इसलिए बार बार परेशान हो जाते हैं और आकर्षित हो जाते है।