सिद्धि तप करने पर तपस्वी रत्ना की उपाधि से हुईं सम्मानित, निकली भव्य शोभायात्रा
शिवपुरी। सिद्धि तप की पूर्णाहूति पर आयोजित समारोह में साध्वी पूनमश्री जी ने भावुक होकर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सिद्धि तप का पूरा श्रेय मेरे पिता, मेरे गुरू और मेरी गुरूणी को है जिनके आशीर्वाद के बिना तप करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं अपने पिता और सांसारिक बुआ तथा आध्यात्मिक गुरूणी मैया की कृति हूं।
मुझे अपने गुरू पूज्य सौभाग्यमल जी म.सा. का भी बहुत आशीर्वाद मिला है। उनके कई प्रत्यक्ष चमत्कार मैं स्वयं देख चुकी हूं। सिद्धि तप पूर्ण करने पर श्वेताम्बर जैन श्रीसंघ ने साध्वी पूनमश्री जी को तपस्वी रत्ना की उपाधि से अलंकृत किया। सम्मान समारोह से पूर्व पाश्र्वनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर से तपस्वी साध्वी पूनमश्री जी म.सा. की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबियों ने तपस्वी साध्वी पूनमश्री जी की जय-जयकार के नारों से आकाश गुंजायमान कर दिया।
समारोह में साध्वी पूनमश्री जी के सम्मान में गुणानुवाद सभा का आयोजन भी हुआ। जिसमें साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने हृदय उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि शिवपुरी श्रीसंघ को साध्वी पूनमश्री जी द्वारा यहां सिद्धि तप किए जाने का गौरव प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि निमाड़ भूमि के गांव सनावद के डाकौलिया परिवार को बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने दो भव्य आत्माओं को जिन शासन को समर्पित किया है। उन्होंने बताया कि गुरूणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी भी डाकौलिया परिवार की बेटी हैं और साध्वी पूनमश्री जी उनकी सांसारिक भतीजी हैं।
साध्वी पूनमश्री जी के पिता श्रीमान रावड़ साहब ने महज साढ़े छह वर्ष की उम्र में अपनी इकलौती लाड़ली पुत्री पूर्णिमा कुमारी को अपनी बहन साध्वी रमणीक कुंवर जी को समर्पित कर दिया था। पिता का अपनी पुत्री के प्रति ऐसा आत्मीय प्रेम बहुत दुर्लभ और अनुकरणीय है। उन्होंने बताया कि शिवपुरी में समाधि मंदिर की भूमि से साध्वी पूनमश्री जी ने सिद्धि तप की शुरूआत की थी। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि उनकी सांसारिक भतीजी साध्वी पूनमश्री बहुत भव्य आत्मा हैं। उनका अपने मन पर अद्भुत नियंत्रण है और वह दृढ़ संकल्प की धनी हैं। ऐसा नहीं कि उन्होंने पहली बार कोई तप किया है।
इसके पूर्व वह 2-2 वर्षी तप (400 दिन की तपस्या), 30 दिन की तपस्या (मासखमण), 5 दिन से लेकर 8, 16 और 19 उपवास की तपस्या, 20 स्थानक की ओली (400 दिन के उपवास), 250 से अधिक पच्चखाण कर चुकी हैं। वह बहुत अनुशासित और नेतृत्व की धनी हैं। सभा में चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष राजेश कोचेटा ने कहा कि जिनका अपने मन पर नियंत्रण होता है वही तप कर सकते हैं। तप करना आसान नहीं हैं। हम साध्वी पूनमश्री जी के तप की अनुमोदना करते हैं। मूर्ति पूजक जैन समाज के अध्यक्ष तेजमल सांखला ने साध्वी पूनमश्री जी के जीवन वृतांत पर प्रकाश डाला और कहा कि अपनी बहन के आनंदित जीवन को देखकर साध्वी जी के पिता ने अपनी पुत्री को रक्षाबंधन के अवसर पर उन्हें समर्पित किया।
धर्मसभा में कु. प्रतिभा जैन, श्रीमती विनीता पारख, श्रीमती विनीता लोढ़ा, चंद्रसेन जैन, डॉ. अजय खेमरिया, संजीव बांझल, राजकुमार श्रीमाल, सुभाष जी और इंदरचंद डाकौलिया ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की। धर्मसभा का संचालन अशोक कोचेटा ने किया। इस अवसर पर परवाना का लाभ संजय लूनावत और साधार्मिक वात्सल्य का लाभ बल्लभचंद जी, पदमचंद जी, शैलेष कुमार कोचेटा परिवार ने लिया।
तपस्वी साध्वी को सम्मानित करने वालों ने लिया कुछ ना कुछ संकल्प
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि तपस्या की अनुमोदना मुफ्त में नहीं होती है। इसके लिए कुछ ना कुछ त्याग अवश्य किया जाता है। उन्होंने कहा कि साध्वी पूनमश्री जी को अभिनंदन पत्र वे ही श्रावक दे पाएंगे जो अपने जीवन रूपांतरण के लिए कुछ ना कुछ व्रत और संकल्प अवश्य लेंगे।
इसके बाद श्वेताम्बर जैन श्रीसंघ के राजेश कोचेटा, तेजमल सांखला, सुमत कोचेटा, राजकुमार श्रीमाल, अशोक जैन, रीतेश गूगलिया, विजय पारख, राजीव नाहटा, मोती कर्णावट, अजय सांखला आदि ने साध्वी जी से रात्रि भोजन, नवकारसी, उपवास, एकासना, व्यसनों का त्याग सहित कोई ना कोई संकल्प उन श्रावकों को दिलवाया। इसके बाद जैन श्रावक संघ शिवपुरी ने तपस्वी रत्ना की उपाधि साध्वी पूनमश्री जी को भेंट की।
तपस्या करने वाले श्रावक और श्राविकाओं का भी हुआ सम्मान
धर्मसभा में साध्वी पूनमश्री जी के सिद्धि तप की अनुमोदना के उपलक्ष्य में 61 श्रावक श्राविकाओं ने 1 उपवास से लेकर 5 उपवास तथा 1 एकासना से लेकर 5 एकासना तक की तपस्या की। सभा में तपस्वी भाई बहनों का सम्मान किया गया और उनकी धर्म आराधना की सराहना की गई।
अपनी गुरूणी बहन नूतन प्रभाश्री जी के उपकारों को नहीं भूल सकती
धर्मसभा में साध्वी पूनमश्री जी ने अपने गुरूणी बहन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी के उन पर किए गए उपकारों की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि गुरूणी बहन नूतन प्रभाश्री जी ने मुझे बचपन से संभाला है और मेरे कई अपराधों की क्षमा की है।
जब मैं स्कूल जाती थीं तो वह ही मुझे ड्रेस पहनाती थीं, मैं स्कूल में उनका खाना भी खा जाती थी, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझ पर कभी गुस्सा नहीं किया और हमेशा मुझे सही रास्ता दिखाया। उनके सहयोग और उपकार को मैं कभी नहीं भूल सकती। साध्वी जयश्री जी और साध्वी वंदनाश्री जी भी मेरा हर समय ध्यान रखती हैं।