Share This Post

ज्ञान वाणी

समान व सम्मानपूर्वक दिया जाता है दान: मुनि संयमरत्न विजय

समान व सम्मानपूर्वक दिया जाता है दान: मुनि संयमरत्न विजय

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा कि युवतियों के कटाक्ष रूपी बाणों से भेदे जाने वाले काम में आसक्त पुरुष व धन के लोभ में आकुल-व्याकुल हुए प्राणी तो हजारों देखने को मिलेंगे, लेकिन काम और धन की प्राप्ति में मूलभूत कारण धर्म ही है, ऐसा जानकर जो मानव हमेशा धर्म करता रहता है, ऐसे प्राणी तो जगत में विरले ही होते हैं।

धूल के ढेर में जैसे मणि मिलना, भयंकर प्राणियों से भरे जंगल में जैसे नगर मिलना, वृक्ष रहित मारवाड़ प्रदेश में वृक्ष की घनी छाया मिलना और मूर्खता रूपी पुष्पों को उत्पन्न करने के लिए गांव रूपी बगीचे में जैसे विद्वानों की सभा मिलना दुर्लभ है, वैसे ही क्लेश के आवेश से भरे इस संसार में शुद्ध बुद्धि का मिलना बड़ा ही दुर्लभ है। हमारी जिस क्रिया से अन्य लोग भी प्रभावित हो, वही वास्तविक प्रभावना है।

समान रूप से व सम्मानपूर्वक बैठकर दिया जाने वाला दान ही वास्तविक दान कहलाता है। श्मशान का खड्डा, समुद्र का खड्डा,पेट का खड्डा व लोभ का खड्डा ये चार खड्डे कभी भी भरते नहीं है। वस्तु को जो अपना स्वभाव है,वही उसका धर्म है। अपने स्वभाव में रहना धर्म है और पर-भाव में जाना अधर्म है। समय को साधने वाला अवसर को जान लेता है।

आलसी व्यक्ति पर अवसर का कोई असर नहीं होती। अवसर को पहचानने वाले को भगवान के दर्शन हो जाते हैं।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar