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“समाज” शब्द की व्याख्या कितनी गहरी और अर्थपूर्ण है: प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा.

“समाज” शब्द की व्याख्या कितनी गहरी और अर्थपूर्ण है: प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा.

श्री चंद्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रहे चातुर्मास की प्रवचनधारा में गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री उदयप्रभसुरीश्वरजी म. सा. ने आज के प्रवचन में समाज को इंगित करते हुए कहा कि “समाज” शब्द की व्याख्या कितनी गहरी और अर्थपूर्ण है। जहा समझदारी से समाधान हो वह “समाज” है। जहा अच्छी तरह से समन्वय हो वह “समाज” है। जहा सब लोगों के लिए समदृष्टिता हो, एक दूसरे के बीच में संप अर्थात् एकता हो, भाईचारा हो वह “समाज” है। जहा एक दूसरे के प्रति सहानुभूति, स्नेह और सेवा का भाव हो। सदाचार जन-जन में जहां बस्ता हो उसका नाम हैं “समाज”।

पूज्य श्री ने आगे कहा कि समाज के दायरे में आने वाले जितने भी व्याक्ति हो या परिवार, अगर उन्हें किसी भी किस्म की तकलीफ हो, तो समाज के आगेवानो को आगे आकर उनकी तकलीफे दूर करना चाहिए। अगर किसी परिवार में कोई समस्या हो या कोई परिवार पैसों के कमी से जूझ रहा हो, ऐसी परिस्थिति में समाज को आगे बढ़कर उनका साथ देना चाहिए व उसके संकट को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

अगर हर समाज अपनी जिम्मेदारी व कर्तव्यों को समझने लग जाए तो कई परिवार टूटने से, बिखरने से बच जायेंगे। कई व्यक्ति डिप्रेशन के शिकार होने से बच जायेंगे। समाज व्यक्तियों से ही बनता है और यही समाज हर व्यक्ति के काम आएगा तो धरती पर स्वर्ग उतर आएगा। यदि यही समाज अपना फर्ज़ सही निभाता है और समाज अग्रणी अपना अनुदान, योगदान उन्हे देते रहते है तो कोर्ट-कचेरी… पुलिस केस आदि तरफ अंधी दौड़ रूक जाएगा। इससे संपत्ति भी बचेगी और स्नेह से भरे रिश्ते कायम रह पाएंगे।

From,

KIRIT JAIN

Secretary

Sri CHANDRA PRABHU JAIN NAYA MANDIR TRUST SOWCARPET CHENNAI

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