समाज के लिए जो उत्तरदायित्व होते हैं। उनको पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाना चाहिएl
आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने नोर्थटाउन के श्री सुमतिवल्लभ श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में प्रवचन देते हुए कहा कि समाज के अंदर व्यक्ति कई बंधनों से बंधा है, इसलिए उसे हमेशा गतिशील रहना चाहिए। आज का युग डिजिटल का युग है। इसके कारण व्यक्ति का व्यवहार, रहन-सहन, खानपान, विचार भी बदल गए हैं। इसके कई फायदे भी हैं और नुकसान भी। व्यक्ति को हमेशा अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर उसको प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं। उनको पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाना चाहिए।
आज इस भागदौड़ की ज़िंदगी में व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाले महत्वपूर्ण गुण संस्कार, अच्छी बातें, अच्छी आदतों की कमी लग रही है। इन अच्छी बातों व आदतों का गुण व्यक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। इसके साथ समाज में रह रहे अन्य प्राणियों को भी समय के साथ प्रेरित करना चाहिए। यह हमारा उत्तरदायित्व भी है। अगर हम समाज के अंदर इस तरह के गुण उत्पन्न करने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करते हैं, तो हम कह सकते हैं कि ये देशभक्ति का गुण है। इसके साथ मानव के कल्याण के लिए हमारी भूमिका समाज के अंदर भी उजागर होगी। समाज के अंदर हर व्यक्ति की अपनी भूमिका रहती है। जैसे प्रशासन, शासन को चलाने के लिए एक सिस्टम होता है।
उस सिस्टम के अंदर एक छोटे से-छोटे अधिकारी से लेकर उच्च अधिकारी होता है और उसकी भूमिका भी निश्चित की होती है। ठीक उसी तरह इसके उदाहरण हमें कई धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों में गुरु और शिष्य की परंपरा के बारे में मिलते हैं। व्यक्ति में नैतिकता, शिष्टाचार, कृतयज्ञता, दयालुता, परोपकार, सहनशीलता, विनम्रता का गुण विद्यमान होना चाहिए। विनम्र व्यक्ति माफी दे सकता है। आज समाज के अंदर देखने को मिलता है कि व्यक्ति के अंदर जो सद्गुण आने चाहिए वे नहीं आ रहे और अवगुण सरलता से अपनाए जा रहे हैं।
आदमी के अंदर तीन गुण विद्यमान होते हैं सत, रज, तम। हमें सतोगुण को बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। सतोगुण का विकास यम, नियम की पालना करने से होता है। सतोगुण ज्ञानाभ्यास, महान लोगों की जीवनी, सत्संग, गुरुवाणी इत्यादि का श्रवण करने से आते हैं। आज की युवा पीढ़ी को इस तरह की पुस्तकों का स्वध्याय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।