जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने लोभ को दुःख का कारण बतलाते हुए कहा कि शरीर के व मन के समस्त रोग लोभ से पैदा होते है! लोभ की मात्रा घटती नहीं, मगर दिनों दिन घटने की बजाय निरंतर बढ़ती चली जाती है! प्रभु महावीर ने कहा ज्यों ज्यों लाभ होता है त्यों त्यों लोभ और अधिक मात्रा में बढ़ता चला जाता है! आज तक जितने भी युद्ध -मन मुटाव -हिंसा -अत्याचार या अनाचार हुए है उसके पीछे एक ही कारण लोभ का रहा है! इन्सान की इच्छाएं अनन्त होती है जो कदापि पूर्ण नहीं हो पाती!
इन्सान खाली हाथ आता है एवं एक दिन खाली हाथ ही प्रस्थान कर जाता है!लोभ तन का, मन का, धन का, कुटुम्ब कबिला, जमीन जायदाद का या पद प्रतिष्ठा का नानाभांति जीवन में प्रगट होता रहता है!मन में हजारों कल्पनाएं उभरती रहती है! प्रभु महावीर ने इस लोभ को जीतने के लिए संतोष का मार्ग बतलाया जैन श्रावको के लिए परिग्रह परिणाम व्रत की व्याख्या की! वस्तुओं की मर्यादाओ से ही मन पर काबू पाया जा सकता है! राजा महाराजाओं के युद्ध इसी लोभ के चलते हुए है! खाने को कहा जाता है तो दो रोटी की जरुरत पडती है!
फिर पता नहीं इन्सान इतना लोभ में क्यों डूबा जा रहा है! कृपण व्यक्ति के पास लक्ष्मी आ भी जाये फिर भी वह इसका उपयोग नहीं कर पाता! कहावत है कीड़ी संचे तीतर खाये अर्थात संचय तो किड़िया करती जाती है खाने वाला कोई अन्य ही होता है! लोभ को पाप का बाप भी कहा जाता है! सारे पाप इसी के इर्द गिर्द घूमते रहते है!
सभा में साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा प्रारम्भ में जप साधना करवाई गई जप से आत्मा पवित्र होती है जप से पापों का नाश होता है, जप परम कल्याण कारी है मानव को जप प्रतिदिन अवश्य करना चाहिए! महामंत्री उमेश जैन ने सूचनाएं प्रदान की के कल से प्रयुषण पर्व पर विशेष कार्यक्रम प्रारम्भ होंगे!