समय के धड़कन को पहचाननेवाला आदमी सफल होता है! समय सबसे बड़ा शिक्षक है- डॉ. राज श्री जी त्रुष्णा मोहका उत्पति स्थान है! मोह है वहॉं त्रुष्णाहै, त्रुष्णा है वहॉं मोह है – डॉ. मेघाश्री जी। आकुर्डी स्थानक मे आज पुच्छिसुणं स्तोत्र के पॉंचवे गाथा का संपुट हुआ! 15 वर्ष से छोटे उम्र के बच्चे जिन्होंने पर्यषण पर्व दरम्यान तप आराधना की थी उन्हें श्री संघ द्वारा सन्मानीत किया गया! 24 बियासन, 12 एकासन,11 उपवास की आराधना इन बच्चों ने की! महासाध्वी से प्रेरणा ली और पाठशाला में पढ़ाने वाली अध्यापिका मनिषा जैन, पलल्वी नहार, सारिका ओस्तवाल, सोनल सोनी ने इनका मनोबल बढ़ाया!
प्रवचन मे साध्वी व्रुंद ने बताया नैतिक मुल्योका पतन बड़ी गतीसे घेर रहा है! संय्यम द्वारा त्रुष्णापरविजय प्राप्त कर सकते हो! हर एक ने सम्यक द्रुष्टी के भाव रखने चाहिये! हर एक ने चिंतन करना चाहिए आयुष्य कितना छोटा है! स्थिर होकर समय का सदउपयोग करना चाहिये! समय की सुरंक्षा करनी चाहिए!
समय हॉथ के तवेली पर रखे बर्फ़ समान है! समयका प्रतिलेखन करो! मोती बिंदुसमान अपना जीवन क्षणभंगुर है, उसका सदउपयोग ज़रूरी है! आज के धर्म सभामे स्वाध्यायी शुभांगी कात्रेला ने अपने पर्यषण पर्व दरम्यानके अनुभव संक्षिप्त में रखे! संघाध्यक्ष ने उपस्थित महानुभवोंका स्वागत कर नन्हे बच्चोके बधाई दी!