चेन्नई. मईलापुर जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि प्रमाद जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। प्रमादवश व्यक्ति अपने अमूल्य समय को बर्बाद कर देता है और जो समय को बर्बाद करता है वह स्वयं बर्बाद हो जाता है।
समय उस बहते पानी की तरह है जो एक पल भी नहीं रुक सकता। समय बड़ा बलवान है जिसके आगे किसी का जोर नहीं चलता। समय ही मनुष्य की गति व प्रगति का केंद्र बिंदु है। जैसे हीरे की कीमत जौहरी ही जानता है उसी प्रकार समय की कीमत जाने वाला महान व्यक्ति ही होता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक सभी प्रकृति जन्य कार्य भी समयानुसार ही होते हैं।
समय पर किए गए कार्य ही सिद्ध होते हैं। असमय हंसना और बोलना मूर्खता का लक्षण है। असमय भूख लगना और भोजन करना बीमारी का चिन्ह है जबकि असमय नींद लेना आलस्य और दरिद्रता की निशानी है। खाने-पीने, उठने, सोने, पढऩे एवं गमनागमन आदि सभी क्रियाएं समय पर करने से शरीर में तंंदुरुस्ती एवं प्रसन्नता रहती है।
समय को पहचानने वाला विद्यार्थी विद्वान एवं व्यापारी धनवान बन जाता है। व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताएं सुनिश्चित करते हुए ही कार्य करना चाहिए। व्यक्ति का समय से आगे चलना उसके शुभ भविष्य का संकेत है।
विज्ञान द्वारा आधुनिक उपकरण एवं यंत्रों का आविष्कार एवं निर्माण समय को बचाने के लिए ही हुआ है पर फिर भी मनुष्य अन्य अनावश्यक गतिविधियों में समय गंवा देता है। व्यक्ति सबसे ज्यादा समय शरीर पर खर्च करता है।
शरीर का वास्तविक श्रृंगार आभूषणों से नहीं गुण है। इसी प्रकार मस्तिष्क का विनय, आंख का लज्जा, कान का शास्त्र-श्रवण, कंठ का ज्ञान एवं हाथ का शृंगार दान है। मुनिगण यहां से विहार कर तैनाम्पेट स्थित कातरेला गेस्ट हाउस पहुंचेंगे।