तिरुकलीकुण्ड्रम, कांचीपुरम (तमिलनाडु): जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, अहिंसा यात्रा के प्रणेता शांतिदूत तीर्थंकरों के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ रविवार को कांचीपुरम जिले तिरुकलीकुण्ड्रम (पक्षीतिर्थ) पहुंचे। आचार्यश्री का पक्षीतिर्थ में पधारना मानों एक तिर्थ में दूसरे तिर्थ के संस्थापक के समागमन की तरह लग रहा था। उत्साहित तिरुकलीकुण्ड्रमवासी अपने आराध्य के अभिनन्दन-स्वागत को पलक-पांवड़े बिछाए हुए थे।
रविवार को प्रातः आचार्यश्री चेंगलपेट से गतिमान हुए तो स्थानीय लोग अपने आराध्य को विदा करने के लिए साथ चल पड़े। गत तीन दिनों से इस क्षेत्र का सुबह का मौसम कुछ-कुछ उत्तर भारत का अहसास दिलाने वाला हो रहा है। प्रातः गिरती ओस की बूंदें और हल्के रूप में ही घिरा हुआ कोहरा मानों महातपस्वी आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होकर श्रीचरणों में अपनी प्रणति अर्पित कर रहे थे। आचार्यश्री आज लगभग चैदह किलोमीटर के विहार के लिए गतिमान हो चुके थे।
आज आचार्यश्री कांचीपुरम जिले के तिरुकलीकुण्ड्रम पधारने वाले थे। इस जगह को पक्षीतिर्थ भी कहा जाता है। इस मान्यता के पीछे यह बात बताई जाती है कि यहां स्थित पहाड़ की चोटी पर एक शिव-पावर्ती का मंदिर है। जहां एक निश्चित समय के लिए पक्षी कैलाश से आते थे। मंदिर के पुजारी द्वारा उन्हें प्रसाद प्रदान किया जाता था। इन्हीं मान्यताओं के कारण इस स्थान को पक्षीतिर्थ कहा जाता है।
पक्षीतिर्थ में तीर्थंकरों के प्रतिनिधि स्वयं आचार्यश्री महाश्रमणजी पधार रहे थे। आचार्यश्री के आगमन से स्थानीय लोगों का उत्साह चरम पर था। आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ तिरुकलीकुण्ड्रम में प्रवेश किए तो उत्साहित श्रद्धालु जुलूस के साथ अपने आराध्य के साथ श्री चंपालाल दुगड़ के घर पधारे।
आचार्यश्री कुछ क्षण विराजमान होने के उपरान्त लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित वी.एस. मैट्रिकुलेशन हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे। वहां उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में समय-समय पर मोड़ लेना चाहिए और परिवर्तन भी लाना चाहिए। एक बाद शरीर में परिवर्तन होने लग जाता है। पचास वर्षों के बाद व्यक्ति के सौंदर्य में कमी आ सकती है।
एक 25-30 वर्ष के युवा में जो सौंदर्य होता है, पचास वर्ष में उसमें कमी आ सकती है। पचास वर्षों के बाद आज्ञा बल में भी कमी की बात आ सकती है। पचास वर्षों के बाद उदारता में कमी, उद्योग-धंधे में युवाओं की अपेक्षा कमी आदि की भी बात भी हो सकती है। इसलिए आदमी को समय रहते आदमी को धर्म क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए और धर्म की कमाई और उसका अर्जन करने का प्रयास करना चाहिए। सामायिक भी धर्म की कमाई है। आदमी के जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की भावना प्रगाढ़ हो जाए तो भी धर्म की कमाई का अच्छा माध्यम प्राप्त हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को अहिंसा यात्रा के संकल्प प्रदान किए। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री बाबूलाल खांटेड़, श्री राजेन्द्र दुगड़, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री ताराचंद बरलोटा श्री चंपालाल दुगड़, श्री विशला बड़ोला व श्री संघ के अध्यक्ष श्री उत्तमचंद कोठारी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। स्थानीय महिला मण्डल, तेरापंथ युवक परिषद ने अपने-अपने गीत के माध्यम से अपने आराध्य का अभिनन्दन किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवन्दना की।