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समय की सही पहचान होना और समय का ज्ञान होना काल प्रति लेखना कहलाता है: प.पू. सुधा कवर जी म सा

समय की सही पहचान होना और समय का ज्ञान होना काल प्रति लेखना कहलाता है: प.पू. सुधा कवर जी म सा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज मंगलवार तारीख़ 20 सितंबर को प.पू. सुधा कवर जी म सा आदि ठाणा 5 के मुखारविंद से:-काल प्रति लेखना:- समय की सही पहचान होना और समय का ज्ञान होना काल प्रति लेखना कहलाता है! सम्यक ज्ञान और आचार्य ज्ञान करके परमात्मा को पाया जा सकता है! आत्मा के द्वारा पाप कर्म अर्जित होने पर उसका विसर्जन करने के लिए प्रायश्चित करना जरूरी है! सोने को शुद्ध करने के लिए आग की भट्टी में तपाया जाता है! वैसे ही आत्मा को शुद्ध करने के लिए पश्चाताप रुपी भट्टी में तपाना पड़ता है!पापों में डूबे रहना शैतानों का काम है और प्रायश्चित करते रहना संतों का काम है!

अज्ञान और प्रमाद के वशीभूत होकर पापों को अर्जित करते हैं! भूल होना स्वाभाविक है लेकिन प्रायश्चित करने से आत्मा निर्मल बन जाती है! महासती मृगावती ने, सूर्यास्त हो चुका समझकर चंदनबाला महासती जी के चरणों में पहुंच जाती है जबकि वास्तव में सूर्य और चंद्र एक ही दिशा में आने के कारण अंधेरा हो जाता है! गुरुणी चंदनबाला महासती जी ने मृगावती महासती को फरमाया कि आपको समय का ध्यान रखना चाहिए! उस रात मृगावती महासती ने बहुत पश्चाताप किया कि यह भूल मेरे से कैसे हो गयी..? और इसी पश्चाताप में उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया!

एक रात जब चंदनबाला जी सो रहे थे तब उस घनघोर अंधेरे में एक सर्प को आता देखकर मृगावती जी ने हाथ के इशारे से उसकी दिशा बदल दी यह उनके केवल ज्ञान का बल था! और जब चंदन बाला जी को को ज्ञात हुआ तो उन्होंने पूछा आपको इस अंधेरे में काला सर्प कैसे दिखाई दिया..?, और उसके बाद उन्हें मालूम पड़ गया कि महासती मृगावती जी को केवल ज्ञान हो गया है! एक केवल ज्ञानी महासती को उलाहना दिया ऐसा समझकर चंदन बालाजी घोर पश्चाताप करते हैं और उन्हें भी केवल ज्ञान प्राप्त हो जाता है! शुद्ध मन से किये गये प्रायश्चित हमारे पापों को हमारे बुरे कर्मों की निर्जरा करने में सहायक होते हैं!

सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया:-हमें हमारे जीवन में सम्पूर्ण मिलता नहीं और अपूर्ण हमें स्वीकार्य नहीं! कभी कभी हमें लगता है कि हमने हमारे जीवन को पूरी तरह से सुलझा लिया है और अचानक लगता है कि कुछ उलझन है! हमें जीवन मे शरीर की स्वतंत्रता ( निरोगी काया) एवं मन की स्वतंत्रता की बहुत जरूरत होती है! इसके लिए विश्वसनीय मित्र यानि कल्याण मित्र की जरुरत पडती है! साधारण मित्र आपके अच्छे दिनों में और आपके सुखी जीवन में साथ रहता है! कल्याण मित्र आपके भले के लिए आपके अच्छे के लिए आपके साथ रहता है!

हमारे रोजमर्रा जीवन मे सुख-दुख, हंसी-मजाक, रोग शोक, सडक या रेल या हवाई दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा, देश विदेश के समाचार, खेल कूद की प्रतियोगिता देखते हैं, सुनते हैं, पढते हैं लेकिन, हम विचलित नहीं होते हैं! खाना पीना नही छोडते हैं! हम तब विचलित होते जब ऐसा कुछ हमारे परिवार में हो जाता है! तब हमारी भावनाएं आहत होती है! सही फसल के लिए सही उपजाऊ जमीन की और सही बीज की जरूरत पड़ती है! वैसे ही हमारी जिंदगी के हर मोड पर हमारी प्रतिभा को निखारने में सही मार्गदर्शन और सही सहयोग की जरूरत पड़ती है! बादल के पानी बरसने का इंतजार सबको रहता है लेकिन समुद्र के पानी से कोई अपेक्षा नही रहती!

हमारे जीवन में श्रद्धा आस्था और विश्वास का बहुत बड़ा स्थान है! हम हवाई जहाज में, आपरेशन थियेटर में, रेल मे बस में भरोसा करके बैठ जाते हैं! वहां पर हम किसी पर भी शक नहीं करते! लेकिन जब यही बात परिवार में होती है बंटवारे की होती है तो हम एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते हैं! हमारे पास जोखिम है तो हम आसपास बैठे सभी लोगों को संदेह की निगाह से देखते हैं उन्हें चोर समझते हैं! लेकिन हमारे पास कुछ भी जोखिम नहीं है तो हमें सब भले ही लगते हैं! हमारी भावना और हमारा विश्वास परिस्थिति के अनुसार बदलते रहता है!

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