आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री रमेश कुमार जी के सान्निध्य में सामयिक कार्यशाला का आयोजन किया गया । सामायिक का महत्व बताते हुए मुनि रमेश कुमार जी ने कहा- समता की साधना का अनुपम अनुष्ठान है सामायिक । समता की साधना यदि सिद्ध हो जाये तो मुक्ति फिर दूर नहीं है ।
समता हमारे जीवन का अंग बनें । हमारे व्यवहार में , बोली में समता की झलक होने चाहिए । संतों के यावज्जीवन की सामायिक होती है । श्रावकों के सामायिक का काल 48 मिनट का है। हजारों लाखों श्रावक इसकी साधना करते है। हमें जागरुकता के साथ नियमित सामायिक का अभ्यास करना चाहिए ।
प्रशिक्षक संतोष जी रांका ने कहा कि जैन धर्म की हर साधना सामायिक से शुरु होती है । सामायिक एक उच्चस्तरीय साधना है ।सामायिक में हम चिन्तन करें अष्ट गुण युक्त सिद्ध मुझे सम्यक् ज्ञान दे । सिद्धा सिद्धिं मम दिसन्तु हे !
सिद्ध भगवान आप ही है जो मुझे सिद्धि दे सकते हैं।सामायिक में समता का क्रम बढ़ना चाहिए । यदि समता की वृद्धि नहीं होती है तो सामायिक भी अपने आप में धोखा है। प्रशिक्षक संतोष जी ने *निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि* इन शब्दों के भावपूर्ण और किस तरह से सामायिक की आराधना करें इसे विस्तार से समझाया ।
तेयुप चैन्नई के पूर्व अध्यक्ष भरत मरलेचा ने स्वागत किया ।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रप्लीकेन चैन्नई