समता के अंदर ही धर्म है! धर्म आराधना से मानसिक प्रसन्नता की प्राप्ति होती है! समता का सार है क्षमापना- डॉ. राज श्री जी जीवन क्षणभंगुर है, धर्म आराधना करकर हमें जीवन सार्थक बनाना है!- डॉ. मेघाश्री जी आज आकुर्डी स्थानक भवन मे “ पुच्छिसुणं” के सातवीं गाथा का संपुट हुआ!
सातवी गाथा का पठन करने से मिलने वाले लाभ का डॉ. मेघाश्री जी ने महत्व बताया! क्षमापना से मिलने वाले लाभ की जानकारी डॉ. राज श्री जी म. सा. ने प्रवचन दरम्यान विशद की! साधना द्वारा दोषो को मुक्त किया जाता है! हर एक ने क्षमाशील बनना है! सदगुणो के लिए क्षमा मंगल का द्वार है! क्षमा फुलो के हार जैसी है!
क्षमारुपी पानी की शरीर को जुरुरत है! साध्वी समिक्षा श्री जी ने अपने मधुरकंठ से “ जहॉं जीवन सुखकर हो, वैसा अपना घर हो” इस भजन की पॅंक्तियॉं रखी! स्वाध्यायी शारदा जी चोरडीया एवं मंजुजी संचेती ने अपने पर्युषण पर्व दरम्यान के स्वांध्यायी रुपसे अनुभवों का एवं धर्मआराधना का वर्णन संक्षिप्त धर्मसभा में रखा!
आज धर्मसभा मे भोईसर एवं उदयपुर श्री संघ के धर्मप्रेमीयो ने प्रवचन एवं दर्शन का लाभ लिया! अतिथीयों का एवं धर्मअनुरागीयों का संघाध्यंक्ष सुभाष ललवाणी ने स्वागत सन्मान किया!